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ग्रहस्थी

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की ।* आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है । *इसके कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा।* *1, माँ बाप की अनावश्यक दखलंदाज़ी।* *2, संस्कार विहीन शिक्षा* *3, आपसी तालमेल का अभाव*  *4, ज़ुबान* *5, सहनशक्ति की कमी* *6, आधुनिकता का आडम्बर* *7, समाज का भय न होना* *8, घमंड झूठे ज्ञान का* *9, अपनों से अधिक गैरों की राय* *10, परिवार से कटना।* *मेरे ख्याल से बस यही 10 कारण हैं शायद ?* पहले भी तो परिवार होता था, *और वो भी बड़ा।* लेकिन वर्षों आपस में निभती थी । *भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।* पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य मे दक्ष है,  *और अब मेरी बेटी नाज़ो से पली है आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।* तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ? *शिक्षा के घमँड में आदर सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।* माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं। *भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो।* ऐसे मे वो दो घर खराब करती है। *मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।* परिवार के लिये किसी ...

ठग का आनंद

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ... थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ... थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ... मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है..... बकरे का, गाय का, भेंस का, ऊँट का, सुअर, हिरण का, तीतर का, मुर्गे का, ताजा बकरे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा.... स्वाद से कारोबार बन गई मौत। मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स। नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗ स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है। जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं... उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ? डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचत...

जो दिखता नही

मै अपनी कार से जा रहा था, रोड पर भीड़ बहुत थी, मेरी कार के आगे एक कार बहुत धीरे चल रही थी... मैंने खीझते हुए हॉर्न बजाए.... मन ही मन कार वाले को कहा चलाना नही आता तो क्यो गाड़ी ले आये..... तभी कार पर लगे स्टीकर पर नजर पड़ी जिस पर लिखा था कि  "कार में दिव्यांग है धैर्य रखें" स्टीकर पर नजर जाते ही सबकुछ बदल गया...दिमाग शांत हो गया..गाड़ी धीरे हो गयी और उस गाडी के ड्राइवर के प्रति एक अलग तरह की फीलिंग आ गयी कि इन्हें दिक्कत ना आये... - खैर घर थोड़ा देर से पहुँचा और जब खाली वक़्त मिला तो इस घटना को याद कर चिंतन किया कि एक स्टीकर मात्र ने सब कुछ बदल दिया, मेरा सोचने का तरीका बदल गया..... मैं इतना शांत और caring हो गया.... - एक स्टीकर  हमारी भावनाओ को बदल देता है, हम ज्यादा धैर्यवान और caring हो जाते हैं..... दिनभर ना जाने कितने लोगों से मिलते हैं उनमें से ना जाने कितने लोग अपनी व्यक्तिगत,शारिरिक और पारिवारिक परेशानियों से जूझ रहे हैं....लेकिन हमें मालूम नही होता क्योंकि उनके माथे पर कोई स्टीकर नही लगा कि वो परेशान हैं उनकी जॉब चली गयी है किसी प्रिय व्यक्ति को खो दिया है वो किसी गंभीर बी...

रिश्तो का मापदंड

रिश्तों को लेकर बहुत कठोर मापदंड मत बनाइए। सामने वाले को एक-एक चीज़ पर परखिये मत। हो सकता है कोई दोस्त बहुत बौद्धिक हो मगर तारीफ करना न जानता हो। हो सकता है कोई ईर्ष्या करता है मगर सबसे सही सलाह भी वही देता हो। सामने वाली एक-एक प्रतिक्रिया पर उसे स्कोर मत दीजिए। उसके हर रिएक्शन पर उसका रिपोर्ट कार्ड तैयार मत कीजिए।       संभव है कि जब वो आपकी किसी खुशी पर बहुत खुश न हुआ तब वो खुद किसी गहरे दुख से गुज़र रहा हो। आप ये सोचकर नाराज़ हो गए कि वो इतना खुश क्यों नहीं हुआ और उसने ये सोचकर अपना दुख बयां नहीं किया कि आपकी खुशी में भंग न पड़ जाए। वो दुखी हो कर आपकी खातिर खुश होने का अभिनय कर रहा है और आप इस बात पर नाराज़ हो गए कि आपकी इतनी बड़ी खुशी में भी वो सिर्फ खुश होने का अभिनय कर रहा है।               इंसान सामान भी खरीदता है तो चीज़ बहुत अच्छी लगने पर उसकी कुछ कमियों से समझौता कर लेता है। मोबाइल का कैमरा अच्छा है तो उसे खरीद लिया ये जानते हुए कि उसकी बैटरी वीक है। टी शर्ट के बाजू पर कंपनी का लोगो पसंद नहीं आया मगर टी शर्ट का Colour...

बारिश

बारिश पड़े तो भागिए नहीं.......  छत नहीं खोजिये........  छाते कभी-कभार बंद रखिये......  किस बात का डर है......?  भीग जायेंगे न...........? तो क्या हुआ......  पिघलेंगे नहीं.. ... .फिर से सूख जायेंगे.. .... तेजाब नहीं बरस रहा है........ आपकी 799 वाली टी-शर्ट भी सूख जायेगी....  ब्रांड भी उसका Levis से Lebis नहीं हो जायेगा..... ... मोबाइल पालीथिन में कस के रख लीजिये..... सड़क साफ़ है.. .....कोई नहीं आएगा....... उस स्ट्रीट लैम्प की पीली रौशनी में डिस्को करती बूंदों को देखिये.......... थोड़ा धीरे चलिए....... जल्दी पहुंच के भी क्या बदल जाना है...... बारिश बदलाव है.......  मौसम का....  मन का.....  कल्पनाओं का.......  और लाइफ के गियर का......  दिमाग से दिल की तरफ........ सब धुल रहा है........  प्रकृति सब कुछ धो रही है.. ........ आप क्यूँ उसी मनहूसियत की चीकट लपेटे घूम रहे हैं......... याद कीजिये...........  वो कागज़ की नाव, कॅालेज/कोचिंग  में भीगे सिर आए वो लड़की, लड़के, बारिश में जबरदस्ती नाचने को खींच कर ले गये दोस्त........ सब चलत...

मौत का स्वाद

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है इंसान ... मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य .. थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ... मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा #स्वाद है।--- बकरे का,गाय का,भेंस का,ऊँट का,सुअर का,हिरण का,तीतर का, मुर्गे का,हलाल का,बिना हलाल का, ताजा बकरे का,भुना हुआ बकरे का,छोटी मछली, #बड़ी मछली,  हल्की आंच पर सिका हुआ मछली। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा.... स्वाद से कारोबार बन गई #मौत।  मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स। नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"❗  #स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी #ऑफिशियल।  गली गली में खुले नये बिरयानी #रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।  जो हमारी तरह बोल नही सकते, #अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं,  उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?  कैसे मान लिया कि उनमें #भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नह...

लक्ष्य

 जब तक आपके जीवन के सभी प्रकार के उद्देश्य; निश्चित और पूर्ब-निर्धारित नहीं होंगे; आप एक निश्चित दिशा में सोच ही नहीं सकते हैं ! इससे आपका मन बैचेन और चलायमान ही रहेगा !" इस प्रकार आप हर-दम अलग-अलग सोचोगे और किसी भी बात पर अंतिम निर्णय कर ही नहीं पाएंगे ! ● यह ही मुख्य तरीका है; अपने जीवन को आगे बढ़ाने का ! ● हम मन को निश्चित दिशा में सोचने को मजबूर तभी कर पाएंगे; जब हम धैर्य के साथ छोटे-छोटे उद्देश्यों पर आगे बढ़ने को तैयार होंगे ! ● हमें स्वीकार करना होगा; कि कोई भी एक दम से सभी इच्छाएँ, और आशाएँ पूर्ण नहीं कर सकता ! हम जितना तेज भागना चाहेंगे; उतना ही ज्यादा असफल होंगे ! अतः तेज भागने की बजाय धीरे-धीरे सोचे-समझे कदम बढाओ, सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ो ! इससे आप हर स्तर पर कुछ नया अनुभव प्राप्त करते जाओगे; जो कि आपके अगले कदम (योजना) के मार्गदर्शक बनेंगे ! इस प्रकार आपका मन स्थिर और तनाब-मुक्त भी रहेगा ! ● इन्हीं छोटे-छोटे क़दमों को; आप अपने लक्ष्य कह सकते हैं; जो कि मिलकर आपके बड़े लक्ष्य बनकर आपको स्थाई कामयाबी के शिखर तक ले जाने की पूर्ण क्षमता रखते हैं ! ● जब भी लक्ष्य बनाएँ; उद्देश्यपूर...

मिट्टी

जीवन में चाहे कैसी भी कठिन और निराशाजनक परिस्थितियां क्यों न हों,  हर सुबह उठकर जब पैर ज़मीन पर रखें तो शुक्रिया करें उस ईश्वर का कि आपके जीवन में फिर एक नई रौशनी से भरा सवेरा आया है.  उस क्षण ज़मीन को छूकर माथे से अवश्य लगाना चाहिए कि हमारे पैरों में उस जमीन का अहसास अभी तक जिंदा है । वरना किसी ऐसी ही एक साधारण सी सुबह वह अहसास भी होगा जब पैरों तले कोई ज़मीन नहीं होगी और हम कहीं दूर से बस देख रहे होंगें अपनी इस काया को इसी ज़मीन की मिट्टी में मिलते हुए. क्योंकि यही वह शास्वत् सत्य है जिसे जानते सब हैं,  सोचता कोई नहीं लेकिन एक दिन रूबरू सभी को होना पड़ता है. उस पल के विषय में जब कभी भीतर उतर कर सोचते हैं तो लगता है कि यह जीवन केवल एक भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं. और देखा जाए तो हम उसी मिट्टी से बने मिट्टी में मिलने के लिए ही जन्म लेते हैं.  फिर ये व्यर्थ के लोभ-शोक न जाने काहे इतने सिर पर चढ़कर बोलते हैं?  तो रोज़ सुबह उठकर यदि आपने ज़मीन पर पैर रखने का वो अहसास अपने भीतर उतार लिया तो यकीनन आप सदा ज़मीन से जुड़ कर रहेंगें और एक दिन ज़मीन की मिट्टी में मिलने का ...

सफलता- असफलता

असफलता से परिचय कराएं.         दिक्कत क्या है जानते हैं? दिक्कत ये है कि फेलियर को, असफलता को हमने भूत बनाकर रखा हुआ है.उसको हम ट्रीट ही ऐसा करते हैं कि अगर हम असफल हो गए तो वो हमारी ज़िंदगी का "दी एंड" वाला प्वाइंट हो जाता है.उसको हम "डेड एंड" घोषित कर देते हैं और यही नहीं इसी बात को हम अपने बच्चों पर भी डाउनलोड करते हैं.         एग्जाम हो रहा है तो फर्स्ट ही आना है.दौड़ में भाग ले रहे हो तो विनर ही बनना है.ये क्यों भूलते हो कि उस दौड़ में कोई रनर अप भी होगा और कोई ऐसा भी होगा जो सबसे लास्ट आएगा और लास्ट आने वाला भी एक इंसान है और उसके अंदर भी भावनाएं है.         हो सकता है, वो बहुत अच्छा न हो, वो बहुत खराब हो, तो क्या? हो सकता है कोई पढ़ाई में  अच्छा न हो, तो क्या? और ये भी हो सकता है कि वो पढ़ाई में अच्छा न होकर किसी और चीज में अच्छा हो.        मान लीजिए, वो किसी में भी अच्छा नही है, औसत है, तो भी क्या? क्या औसत लोग नही होते? क्या फेल होने वाले लोग नही होते?          सबसे पहल...