द कश्मीर फ़ाइल

कश्मीर फाइल्स समीक्षा

फ़िल्म देखकर मजबूत से मजबूत व्यक्ति की आँखों में आंसू आयेंगे। इमोशनल होगा, डर लगेगा, गुस्सा आयेगा और तरस भी आयेगा। यानि जिस उद्देश्य के लिए फिल्में बनती है इसमें वह सभी चीजें भरपूर से अधिक हैं। फ़िल्म के लिहाज़ से इसमें कोई बुराई नहीं है। बुराई और अच्छाई क्या वह नीचे के पैराग्राफ्स में समझें मगर फ़िल्म देखते हुये आप विचलित भी होंगे यह इसका मुख्य विषय है। 

अब आते हैं उस ऐतिहासिक घटना पर जिसपर बेस्ड यह फ़िल्म है यानि कश्मीर तो यदि कोई सच्चा इतिहासकार, निष्पक्ष पत्रकार, जागरूक, शैक्षिक ईमानदार नागरिक हो वह आधे से भी अधिक तथ्यों और बातों से असहमत होगा यदि उसने खुद से जाना, पढ़ा हो तभी। यदि सच जानने का आपका कोई अन्य स्रोत नहीं तब फ़िल्म के हिसाब से आप कुछ भी गलत नहीं कह सकते हैं।

फ़िल्म में सही क्या है. 

फ़िल्म में क्रूरता वास्तविक है, फ़िल्म में डर का माहौल वास्तविक है, फ़िल्म में खौफनाक वारदातें वास्तविक है, साम्प्रदायिक दृष्टिकोण वास्तविक है, मीडिया, पुलिस और प्रशासन की लाचारी वास्तविक है, षडयंत्रकारी नीतियां वास्तविक है, शासन की अनदेखी वास्तविक है, पलायन, अपनों को खोने का दर्द, अपने ही घर से बेघर होने का डरावना मंजर सब लगभग वास्तविक है।

फ़िल्म में झूठ क्या है?

फ़िल्म में सबसे बड़ा झूठ है कश्मीरी पंडितों की वापसी हेतु धारा 370 को बताना जबकि धारा 370 भारत के अन्य हिस्सों के लिए बाधा थी और कश्मीरी पंडितों पर धारा 370 की वर्जनाएं नहीं क्योंकि वे वहां के मूल नागरिक रहे हैं। दूसरा जेएनयू के दृश्य को दर्शाना पूर्णतः एक प्रोपेगैंडा है। फ़िल्म में ऐसे समझो कि कश्मीरियों को आज के समय में पाकिस्तान, अलगाववाद या आतंकवाद नहीं बल्कि जेएनयू भड़का रहा होगा और वहां सब देशद्रोही हैं।

फ़िल्म में हिन्दू सेक्युलिज्म पर सवाल उठाए हैं और उन्हें भविष्य में कम्युनल बनाने पर फोकस किया गया है जबकि बाकी अन्य धर्मों के कम्युनलिज्म को गलत ठहराया है उन्हें सेक्युलर होना चाहिए ऐसा संदेश देने की पूरी कोशिश कोशिश की है। फ़िल्म में दक्षिणपंथ को ही सर्वश्रेष्ठ विचार साबित करने की कोशिश है। वामपंथ, साम्यवादी, समाजवादी अन्य सभी उदारवादी व लोकतांत्रिक संस्था, व्यक्ति, विचार आदि सब देशद्रोही साबित करवाने की कोशिश है। 

फ़िल्म में आज़ादी के नारे को जी न्यूज के डॉक्टरेट वीडियो की भांति बनाया गया है। भारत तेरे टुकड़े होंगे और मनुवाद से आज़ादी, संघवाद से आजादी इन सभी नारों को जेएनयू में लगाता दिखाया गया है। आज़ादी का नारा कभी मत लगाना यह देश विरोधी है यह भी स्पष्ट संदेश दिया गया। यानि मनुवाद से आज़ादी और भारत तेरे टुकड़े होंगे यह दोनों ही विचार एक ही तरह के लोग रखते हैं। 

जातिवाद, लिंगभेद के खिलाफ भी यदि कोई मुखर होता है तो यकीनन वह देश विरोधी है मगर धर्म के नाम पर बस हिन्दू उपेक्षित, पीड़ित है यह फ़िल्म से निलककर आता है। कश्मीरी पंडितों के साथ घटित घटना दुःखद है लेकिन फ़िल्म से यह भी संदेश दिया गया कि वही एकमात्र नरंसहार हुआ है बाक़ी कोई भी अन्य टॉपिक देश विरोधी ताकतों का प्रोपेगैंडा होता है जो सब के सब झूठ पर आधारित होते हैं। 

कश्मीरी पंडितों पर जिनका यह वक्तव्य कि कश्मीरी पंडितों को कुछ समय के लिए घाटी छोड़कर जाना चाहिए, हम उन्हें समय देखकर वापस बुला लेंगे और जो मुख्य भूमिका में थे तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा जी उन्हें पूरी फिल्म में दिखाया ही नहीं गया बल्कि फ़िल्म में तो यह बताया गया कि 19 जनवरी से 21 जनवरी तक दो दिन कश्मीर में कोई सरकार नहीं इसलिए कत्लेआम हुआ। 

सच्चाई यह है कि जगमोहन जी फारुख अब्दुल्ला की सरकार बर्खास्त करने के उद्देश्य से जम्मू में थे लेकिन इत्तेफाक से फारुख अब्दुल्ला सीएम पद से 19 जनवरी को पहले ही इस्तीफा देकर इंग्लैंड निकल गए और जगमोहन जी राज्यपाल के रूप में नियुक्त हुये और उसवक्त जम्मू में ही थे। यह किरदार का जिक्र ही न करना फ़िल्म को बनाने के असंख्य स्पष्ट कारण दर्शाते हैं। 

फ़िल्म में अनुपम खेर एक शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं और उनका पोता जेएनयू में प्रेजिडेंट का चुनाव लड़ता है। दादा जब मृत्यु के करीब होते हैं तब वह एक-एक अपनी आखिरी ख्वाहिश व बातें बताते हैं पर पोते के मां-बाप किसने मारे यह नहीं बताते। क्यों नहीं बताते इसका कोई लॉजिक ही नहीं लगता। बिट्टा जो मुख्य आरोपी है वह क्यों कश्मीरी पंडितों को चुनकर मारता है बाकियों से क्यों सहानुभूति है इसपर अधिक विमर्श नहीं हुआ है। 

फ़िल्म के अंत में दर्द और नफ़रत के साथ आप डर के साथ बाहर निकलते हैं। फ़िल्म धारा 370 के हटने के बाद तक जाती है, जिसका सरकार और प्रधानमंत्री को क्रेडिट भी मिलता है लेकिन कश्मीरी पंडित वापस कब जाएंगे, अपराधियों को सजा कब मिलेगी? इस विषय को भी छोड़ दिया गया है। मेरी समीक्षा भी यहीं पर छूटती है कि जबतक आप खुद से सच्चाई तक नहीं पहुंचेंगे तब हर ओर भटकाने व भड़काने वाले मिलेंगे। दर्द सबका बड़ा है, न्याय सबका हक है लेकिन किसी भी पक्ष में निष्पक्ष यहां कोई नहीं दिखता। 

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