तनाव - भाग दो
कुछ खबरें बहुत शॉकिंग होती हैं, खासकर मृत्यु की खबर। और अगर मृत्यु आत्महत्या से हुई हो, तो आघात और जोर का लगता है। और ये सबकुछ तनाव की वजह से होता है।
थोड़ा ध्यान से इसे समझिए कि तनाव कैसे पैदा होता है और तनाव से कैसे बचा जा सकता है। यह कोई असंभव कार्य नहीं है और इसमें आपका पैसा भी खर्च नहीं होता है। बस आपको दिमाग के काम करने का तरीका समझ में आना चाहिए। मनुष्य का दिमाग इतना विकसित है कि उसने सिर्फ इसी के बूते पर पृथ्वी के सारे प्राणियों को पीछे कर पूरे ग्रह पर ही कब्जा जमा लिया। अब वह आने वाले समय में दूसरे ग्रहों का रुख भी करेगा। मनुष्य की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह एक ओर जहां अपने दिमाग को नियंत्रित कर सकता है, वहीं दूसरी ओर अपनी चेतना को विकसित भी कर सकता है। आप ध्यान के जरिए ये दोनों काम एक साथ कर सकते हैं। इसीलिए वह गौतम बुद्ध हों या महावीर अथवा आधुनिक वक्त के ओशो या फिर सदगुरु, सबने ही ध्यान का सहारा लिया। ध्यान बहुत ही बुनियादी चीज है। मैं इसे आध्यात्मिक राह का पहला कदम या पहला पायदान कहूंगा। इसीलिए ऐसे योग गुरुओं और संतों की कल्पना नहीं की जा सकती, जो कि ध्यान नहीं करते हों। आत्महत्या लगातार सोचने से पैदा हुए आवेग और उद्वेग में उठाया गया कदम है। इसीलिए एक वास्तविक संत पुरुष कभी ऐसा कदम नहीं उठा सकता। वह समाधि जरूर ले सकता है, जिसमें वह स्वयं अपने शरीर से प्राण ऊर्जा को हृदय में केंद्रित कर उससे मुक्त हो जाता है, परंतु वह गोली मारकर आत्महत्या नहीं कर सकता। दिमाग का बुनियादी कार्य सोचना होता है। एक सामान्य व्यक्ति एक पूरे दिन में लगभग 60,000 विचारों से गुजरता है। इनमें से ज्यादातर विचार कैसे भी तो ऊटपटांग होते हैं। उनका कोई तर्क नहीं होता। और नकारात्मक विचारों का भी सतत हमला होता रहता है। आदमी की परेशानी यह है कि वह नकारात्मक विचारों को पकड़ लेता है और उनके बारे में सोच-सोचकर एक भंवर बना देता है। इसी भंवर में अंतत: वह डूब जाता है। सत्य यह है कि हम सबके जीवन में किसी किस्म की कोई समस्या नहीं होती। वहां सिर्फ और सिर्फ स्थितियां होती हैं, जिनसे आदमी को दिमाग लगाकर निपटना होता है। स्थितियों से अगर हम निपटें नहीं और लगातार उनके बारे में सोचते रहें, तो अंतत: वे भंवर बनकर हमें निगल ही तो जाएंगी। नकारात्मक विचारों से बचने का तरीका यह है कि आप किसी विचार को पकड़िए मत, वह कितना भी अच्छा या खराब हो। विचार बादलों की तरह होते हैं, जो आते हैं और कुछ देर में चले जाते हैं। आप विचारों को सिर्फ देखिए और उन्हें जाने दीजिए। आत्मज्ञानियों के लिए तो जगत एक खेल है, जहां किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें