अज्ञान


मैं जानता हूँ कि हर व्यक्ति अपने आप को मेरी भाँति ज्ञानी मानता है यह अलग बात है कि आप मुझे निरा बुद्धु समझते हो पर यह आपकी व्यथा हो सकती है मेरी नही । ओर यह सच कहना पडे़गा कि संसार मे सबसे बड़ी बुरी बात हैं अज्ञान का भाव पैदा हो जाय ,तब बहुत कुछ सिमट जाता है अपना ,जिसके होते "मैं "था ओर यह दशा जीवन की शास्त्र पढे व्यक्ति के लिए बहुत ही घातक है ।फिर वह निरर्थक तर्को आडंबरो ओर स्थूल प्रवृत्तियो का घोर हिमायती बन कर मानवता के लिए विध्वंस का कारण बन जाता है ।
अज्ञान का अर्थ मेरी दृष्टि मे बहुत कुछ स्थूल ज्ञान से निवृत्त होना है यह आभास हो जाना कि "न मैं नीचे हूँ न मैं ऊपर हूँ मै अतुलनीय हूँ न मैं अपनी निंदा करता हूँ न गुणगान । सहज बन जाना अज्ञान है यही स्वभाव हैं । ज्ञान बाहर हैं जो अभिव्यक्ति चाहता है शलाघा चाहता है पूजन चाहता है।
जब भी कोई इस अहसास से भर जाता है विनम्रता ओर सहजता से उसका अपना अलग ही सौंदर्य प्रकट होता हैं प्रकृति, शून्य आकाश की मौन दशा शास्त्र है काश हमारे ज्ञानी शास्त्र से अधिक इसको पढते । हमारा शास्त्रीय ज्ञान उलझे हुए धागो का गुंफन बन गया है हजारो विचार ओर सिद्धांतों के बादल हृदय गगन को घेर चुके है वास्तविक रश्मि रथी इन्ही बादलो से घिरा अपनी प्रभा खो चुका है ।कृत्रिम इन्द्र धनुषिय रंग ज्ञान की इस तीव्र बारिश मे चमक रहे है ओर हम गफलत के भंवर मे फसे हजारों हजारों अंधेरी राहों मे फस गये है ।
मैंने पढ़ा था पश्चिम के एक विचारक डी . एच . लौरेंच का कथन "यदि सौ साल के लिए विश्व विद्यालय बंद हो जाये, तो आदमी फिर से आदमी हो जाये । " इसका यह मतलब कतई नही कि हम आदमी नही रहे , मतलब मात्र इतना कि हम आदमी से बहुत ऊंची छलांग लगा चुके है, हम विशुद्ध ज्ञानी हैं हमारी शिक्षा ने हमे तमाम चालाकी ओर स्वार्थ चतुराई की अलौकिक रौशनी दे दी है हम बहुत प्रवीण ओर कलाबाज हो चुके है ।
अक्सर यह देखा गया है कि इस ज्ञान ओर अज्ञान का संबंध शिक्षा से जोड दिया जाता है अधिकांश की लंबी छोडी उपाधियां गवाही देती है कि लंबोतरी सूची धारी अधिक जानकार ओर ज्ञानी है , यही से ज्ञान ओर अज्ञान के बीच संचय जनित धारणायें ओर विश्वास की विवशता जन्म लेती है और हम एक ऊबाऊ सफर की तरफ बढते चले जा रहे है डिग्रीयों का थोक ओर ज्ञान का दंभ यही से शुरू होता है जहां आदमियत खो जाती है, ओर कथित ज्ञानी का अज्ञान निरंतर प्रगति करता रहता है ।
अंत मे सुकरात का प्रसंग देकर अपने ज्ञान को विराम दूंगा । "जब मै युवा था ,निश्चित था कि मै सब कुछ जानता हूँ ,बुढ़ापे मे अहसास हुआ कि बहुत कम जानता हूँ ओर जब मरने के नजदीक पहुंचा तब उसने कहा कि अब मुझे पता लगा कि यह भी मेरा भ्रम था कि मै थोड़ा जानता हूँ सच तो यह है कि मै कुछ भी नही जानता, मै अज्ञानी हूँ ...।" उसी समय विद्वानो ने यह घोषणा की कि " सुकरात इस देश का सबसे बड़ा ज्ञानी है ।"

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