राष्ट्रपति अगला कोन. ???

भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक के तौर पर दस्तखत करने के लिए मुख्तार अब्बास नकवी के यहां जाना था। कमाल की बात ये थी कि उनमें से किसी को भी नहीं पता था कि दिल्ली की सबसे ऊंची और सम्वैधानिक तौर पर देश की सबसे ऊंची रायसीना पहाड़ी पर विराजने के लिए वो लोग किसके नाम पर मुहर लगाने जा रहे हैं। ज्यादातर सांसद लालकृष्ण आडवाणी के ही पक्ष में सहानुभूति रख रहे थे। लेकिन, राष्ट्रपति बनाने के लिए सांसदों की सहानुभूति नहीं, उनके मतों की जरूरत थी। और वो मत पार्टी के तय उम्मीदवार के ही पक्ष में जाना तय था। सांसद मुख्तार अब्बास नकवी के घर पहुंच रहे थे और ठीक उसी समय 11 अशोक रोड में भाजपा मुख्यालय पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बताया कि रामनाथ कोविंद एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे। बिहार के राज्यपाल को राष्ट्रपति बनाने की नरेंद्र मोदी और अमित शाह की इस योजना की जानकारी किसी को नहीं थी।
भारतीय राजनीति नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आगे कैसे याद करेगी ? एक शातिर राजनीतिक जोड़ी के तौर पर ? उनकी योजना से बाहर काम करने वाले हर नेता का खात्मा करने वाली जोड़ी के तौर पर ? भारतीय जनता पार्टी को देश की चक्रवर्ती पार्टी बनाने के तौर पर ? हिन्दू एकता के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले नेता के तौर पर ?
अगर इतिहास में आज मुझे इस जोड़ी को दर्ज करने को कहा जाए, तो मैं इस जोड़ी को इन सारे जवाबों के मिश्रण के तौर पर याद करूंगा। भारतीय राजनीति में इस जोड़ी को एक क्रूर राजनीतिक जोड़ी के तौर पर याद किया जाएगा। और इसलिए भी कि इसी राजनीतिक जोड़ी ने भारतीय जनता पार्टी को भारत की सर्वशक्तिमान पार्टी कैसे बना दिया।
इस सबके बीच में गुजरात विधानसभा का चुनाव इसी साल के अन्त में होना है। ऐसे में 150 सीटें हासिल करने के लिए जरूरी है कि गुजरात में हिन्दू एकता का बीजेपी का आधार मजबूत बना रहे। और इसके लिए पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रधानमंत्री के साथ दलित का राष्ट्रपति बनना बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा जैसा दिखता है। रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल हैं। उम्मीदवारी घोषित होने के बाद जिस तरह से नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया दिखी है, उसमें जेडीयू का साथ आना लगभग तय है। चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, रामविलास पासवान पूर्ण समर्थन दे चुके हैं। मुलायम सिंह यादव भी मोदी के उम्मीदवार के साथ ही रहेंगे। कोविंद उत्तर प्रदेश के कानपुर से आते हैं और कोली समाज से आते हैं। इसलिए मायावती के सामने भी विरोध का विकल्प बचता नहीं है। पहली प्रतिक्रिया में मायावती ने भी समर्थन के संकेत दे दिए हैं। कुल मिलाकर सीपीएम महासचिव सीतीराम येचुरी को छोड़कर अब तक आई सारी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपना आधार मजबूत करने के लिए रायसीना पहाड़ी पर किसी दलित के पक्ष में खड़ा है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत लगातार हिन्दुओं के लिए “एक कुंआ, एक मन्दिर, एक श्मशान” की बात कर रहे हैं। अब एक गैर स्वयंसेवक दलित के रायसीना पहाड़ी पर विराजमान होने के संघ और मोदी के फैसले से संघ की बात का वजन दलितों में और बढ़ेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए हिन्दू एकता का आधार और मजबूत होगा। देश में दलित-मुसलमान आन्दोलन को मजबूत करने की इच्छा रखने वालों पर रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी वज्रपात की तरह है। मोदी-शाह यूं ही नहीं, आज की तारीख की सबसे खतरनाक राजनीतिक जोड़ी है। इस जोड़ी ने एक दलित को रायसीना पहाड़ी पर चढ़ा दिया है, अब दलित भला किसी और की कहां सुनने वाला है।

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