सही तो है????
दिल पर हाथ रख कर बताइये..कि क्या आलू ५० रुपये किलो और गेंहू ७५ रूपये किलो नहीं बिकना चाहिए..अब इकॉनमी का ज्ञान मुझे मत देना..सब लूट रहे हैं तो आलू और गेंहू इतना तो बनता है.
क्या कहा मध्य वर्ग या निम्न वर्ग का बजट बिगड़ जाएगा..खाने के लाले पड़ जाएंगे..तो क्या हुआ..हम उन्हें उकसायेंगे कि वो १००० रुपये दिन की दिहाड़ी के लिए आंदोलन करें..दिल पर हाथ रख कर बताइये कि क्या दिन की १००० रूपये दिहाड़ी कोई ज्यादा है, ऐसे देश में जहां अम्बानी हज़ारों करोड़ों के घर में रहता हो और अडानी हज़ारों करोड़ों के प्रोजेक्ट चलाता हो..नहीं न.
लेकिन अगर १००० रूपये की मजदूरी तय हुई तो विश्व बाजार के हिसाब से हमारे धंधे कम्पीट ही नहीं कर पाएंगे..और धीरे धीरे धंधे ही बंद हो गए तो मजदूर १००० रुपये किस से लेगा और किसान ५० रुपये आलू किस को देगा..
अरे ये देश है न..इसको लूट लूट कर खाएंगे...थोड़ा तुम..थोड़ा हम..देखो 70 साल में भी ये देश बचा रह ही गया न..भले ही लाखों करोड़ों खा लिए गए हों..इसलिए चिंता मत करो..खाने पे ध्यान दो..तुम भी खाओ..हम भी खाएं..भाईचारा बरकरार रहे..
लेकिन देश खा जाएंगे तो बचेगा क्या..
अबे अजीब आदमी हो..चीन अमरीका रूस हैं न..जैसे पाकिस्तान को देखो..उन्होंने देश बेच के खा लिया तो अमेरिका ने उन्हें भीख पे पाला..अब चीन उन्हें पालेगा..
लेकिन एक स्वाभिमानी समाज ऐसे किसी गैर मुल्क के टुकड़ों पे पलने को सोच भी कैसे सकता है..
यार तुम सोचते बहुत हो..अपनी सोचो..आने वाली पीढ़ियां अपनी सोचेंगी..तुम बस ये सोचों कि इस अंधी लूट में तुम कितना लूट सकते हो..अरे सोचो मत..आज जो बड़े हैं..वो सब ऐसे ही बड़े बने हैं..स्वाभिमान का स्वेटर उतार दो..और आओ इस गाय रुपी देश के कबाब बना के खाएं ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें