पंद्रह अगस्त
और फिर आ गया पंद्रह अगस्त | देश की आबादी युवा और देश बूढ़ा हो चला है अबकी बार | एक बार एक मुलाक़ात में जब मैंने भारत से पुछा कि और बताओ दिन कैसे चल रहे हैं ? वह बेहद प्यार से बोला "ठीक ठाक"...हमने पुछा क्या हुआ ? वह फिर धीमी आवाज़ में बोला "बीमार हूँ"...हमने फिर पुछा क्या हुआ ? इस बार उसने हमसे पुछा "तुम्हे नहीं पता?"....हम बोले "नहीं तो".. वह बोला "तभी तो!"
और फिर आ गया पंद्रह अगस्त | देश एक बार फिर एकता में अनेकता का परिचय दे रहा है | हाँ, पूरे होश में लिखे हैं "एकता में अनेकता".....फिर उसने बताया हमे कि "एक जब होता है तो अनेक के बराबर होता है, परन्तु जब अनेक होते हैं तब वास्तव एक भी नहीं होता"...हम नि:शब्द खड़े थे, वो भी | सच बोला जा चुका था |
और फिर पंद्रह अगस्त आ गया | बस लड्डू खाइए, क्यूंकि आपको फर्क नहीं पड़ता कि देश वास्तव में कैसा है | आपके लिए आजादी है, छुट्टी है, बना बनाया सिस्टम है, तमाम न्यूज़ चैनल है, गली में पार्षद रहता है, वो आपका दोस्त है, आपके घर की सड़क साफ़ है, स्वच्छ भारत हो या न हो, आपको फर्क ही क्या पड़ता है ? इस बार उसने पुछा "क्या तुम्हे फर्क पड़ता है?"...हम ने कहा "हाँ, पड़ता है"...वह बोला "तो फिर, क्यूँ चुप हो?....हम बोले "शब्द नहीं हैं".....वह बोला "कहने के लिए शब्दों की जरुरत नहीं होती"...सन्नाटा था, सिर्फ सन्नाटा|
और फिर पंद्रह अगस्त आ गया | क्या बात कर रहे हो ? इस बार कचोडी समोसे मिले हैं ? सम्मान हुआ है ? वाह रे, सुलतान बन गये हो ? इस देश की सबको जरूरत है, पर फिर भी देश के लिए ही आनाकानी? कितने पेड़ लगाये ? कितनी जान बचायी ? कश्मीर से पत्थर फेंके गये, तो कितने पत्थर वापिस लौटे ? क्या, एक भी नहीं ? आरक्षण ने बस फूंकी है, कई लोग मारे गये हैं, तुम जिंदा हो ? शुक्र है, पर तुम कैसे बच गये ? ...वह बोला "यही होता आ रहा है"..हम बोले "क्या?...वह बोला "यही"...शायद वो समझ गया था कि हम समझते ही नहीं, या समझना चाहते भी नहीं|
और फिर पंद्रह अगस्त आ गया | कैलेंडर बनाने वाले को ढेरों दुआएं, सोमवार को पड़ा है तो तीन दिन की छुट्टी मिल गयी, इस बार घर जा रहा हूँ | माँ के हाथ का खाना खाना है | बहुत दिन बीत गये | वो बोला "क्या ये तुम्हारा घर नहीं?"...हम बोले "पर यहाँ माँ नहीं"...वह बोला "क्या सच में?...तुम भी भारत को माता कहने से डरते हो?"...शान्ति शान्ति शान्ति |
और फिर पंद्रह अगस्त आ गया | जन गण मन याद है ? पूरा ? वाकई ? क्या बात करते हो ? रुके क्यूँ नहीं थे जब कल रस्ते में स्कूल से आवाज़ आ रही थी राष्ट्रगान की ? समझते हो ? पहचानते हो उसे ?...वह बोला "ये हाल हैं"..हम बोले "बदल रहे हैं"...वह बोला "और कितना?...."
कल पंद्रह अगस्त है, आज की रात और बस, फिर शायद ही वो मिले कहीं, फिर शायद ही वक़्त हो हमारे पास, फिर शायद ही ये छुट्टी मिले...मिल लीजिये भारत से...थोड़ी बात करिए..ख़ुशी होगी| वो याद करता है अपनों को..आप भी करते ही होंगे ? करते हैं न ?
जय हिन्द !
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