गुमशुदा


पता है इतने दिनों से में चुप क्यों हुँ ? क्यूंकि समझ नहीं पा रहा की आखिर जाना किस और है मुझे ..!!
सोचा कुछ रोज़ खुद में रह कर देखूं शायद कोई सिरा कोई सुराग मिल जाये मेरे होने का , गज़ब का हुनरबाज होगा मेरा कातिल भी , पता नहीं किस मिटटी में दफनाया है मुझे , हर दो चार कदम रुक कर कान जमीं को लगा कर कोशिश करता हुँ सुनने की .... साँसे अपनी ...!!

जिन्दा हूँ ..जी हाँ... दफ़न हूँ पर जिन्दा हुँ अभी ...!! मरा नहीं .. और ना मरूंगा .!!!
टुटा हूँ बिखरा हूँ पर हारा नहीं अभी..!!
गुमशुदा सिर्फ तब तक ही हूँ जब तक तलाश ना लूँ खुद को ... एक दिन फिर से चमकुंगा .. टुटा ही सही मगर किसी का सितारा हूँ अभी !!!

एक दिन मेरा भी रंग होगा. . मुझ में बहुत रंग है अभी बाकि ... फीके रंग को सुर्ख करना में अब भी नहीं भुला ..!!

सिर्फ एक सुराग बस एक सुराग कहीं से मिल जाये मेरे होने का ...!!

डिअर डायरी , मेरा वजूद हो तुम .. मेरी पहचान हो तुम .. यकीनन तुझ में ही कहीं दफ़न होगी मेरी रूह !!

अब झाड़ खुद को , पलट दे अपने पन्ने सारे..!!
चल ‪#‎तरंग‬ खोजते है .. कुछ रंग भरें प्यारे

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