नासमझपन

कामयाब होने के लिए अकेले ही आगे बढ़ना पड़ता है, लोग तो पीछे तब आते है जब हम कामयाब होने लगते है l

आप अपने आस पास देख रहे होंगे कि हर कोई आक्रोशित है..
जिसे थोड़ा पता है वो भी...
जिसे कुछ नहीं पता वो भी..
आक्रोशित हैं ऐसे मुद्दों को लेके जिनको लेके उनकी खुद की कोई समझ है ही नहीं...
..हर शाम तक इतना इधर उधर का सुन लेते हैं कि दिमाग चकराने लगता है..क्या हो रहा है..क्यों हो रहा है...मेरा पडोसी गुस्सा है तो मुझे भी होना चाहिए...
इसकी जड़ ये सूचनाओं का दौर है...
फेसबुक पर सूचना..ट्विटर पर सूचना..
.अखबारों में सूचना..व्हाट्सप्प पे सूचना..टीवी पर सूचना..fm पर सूचना.
इतनी सारी सूचना हमारा दिमाग प्रोसेस करने का आदी नहीं है...
यही वजह है कि हम तथ्यों के अभाव में मीडिया द्वारा आक्रोशित कर दिए जाते हैं.
इंटरनेट का दौर है..मेनस्ट्रीम मीडिया वैचारिक कंगलेपन से जूझ रहा है...जब भी आपको लगे कि एक्सटर्नल फैक्टर्स आपको ऑउटरेज करने के लिए उकसा रहे हैं...और अपना घर-बार चलाने के लिए चैनल की चाकरी करने वाला एंकर आपको अमित्ता बच्चन स्टाइल में सर दर्द दे रहा है तो शांत मन से उस टॉपिक को पकड़िए..इंटरनेट पर उसके पक्ष विपक्ष में आर्टिकल पढ़िए...सिस्टम को समझ के अपनी सोच विकसित कीजिये...और फिर चिंतन कीजिये.
कुछ ही दिनों में आप जान जाएंगे कि जिसको आपने अमिताभ बच्चन समझ के समाज का मसीहा मान लिया था..वो दरअसल राजू श्रीवास्तव का संजीदा डुप्लीकेट था..जो आपकी वाह वाह रुपी TRP के लिए अपने मालिकों के नमक का हक़ अदा कर रहा था...और नेशन वांट टू नो के नाम पर जिसने परेशां कर रखा है .. उसका नेशन के लोगों से कोई वास्ता भी नहीं है.
अगर आप सर दर्द से मुक्ति..फ्रेंड सर्किल में इज्जत चाहते हैं..और साथ में ये भी चाहते हैं कि सोसाइटी में लोग सीरियस लें...और आपकी बीवी आपको पॉपकॉर्न न समझे तो या तो इंटरनेट का सदुपयोग करके ज्ञान वृद्धि कीजिये....
और अगर बढ़िया शाम बिताने का मूड है...तो टीवी ऑफ कर दीजिये..

वही है
सबसे
बड़ा सच

जिसका
कोई
विकल्प
नहीं है।

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