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मुफलिसी

कितनी खामोश होती है मुफलिसी,अपनी टेढ़ी जुबान में !क्योंकर कोई नजर देख नहीं पाती,इसे इस जहान में ।कितनी आह, कितना दर्द, कितनी भूख दिखाई देती है,सब मसरूफ हैं खुद में, बदली-सी निगाहें दिखाई देती है ।कहीं तो रोती है जवानी, कहीं बिखरता आंख का काजल,उतने ही पैबंद लिए तन को,छुपाता किसी मां का आंचल।कितनी खामोश है मुफलिसी, क्यूं लफ्जों में बयां नहीं होती है !मासूम-सी अबोध कन्याएं फिर, कौड़ी-कौड़ी के लिये बिकती हैं।कितनी ही बहनों की डोली, फिर सपने में भी नही सजती है।असहाय कमजोर बदन को लेकरजब कोई बाप यूं सुलगता है, मजबूर ख्वाहिशों का धुआं छोड़ते,कोने-कोने में चिलम पीता है।

पॆसे का रंग

स्वयं विचार कीजिये....!Title - इतना कुछ होते हुए भी !जब पैसा नहीं होता है तो सब्जियां पका के खाता हैऔर जब पैसा आ जाता है तो सब्जियां कच्ची खाता है।.जब पैसा नहीं होता है तो मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाता है और जब पैसा आ जाता है तो इंसान भगवान को दर्शन देने जाता है।जब पैसा नहीं होता है तो नींद से जगाना पड़ता हैऔर जब पैसा आ जाता है तो नींद की गोली देके सुलाना पड़ता है।जब पैसा नहीं होता है तो अपनी बीवी को सेक्रेट्री समझता हैलेकिन जब पैसा आ जाता है तो सेक्रेट्री को बीवी बना लेता है।ऐसा है ये पैसा अजीब है ये पैसा...???छोटा सा जीवन है, लगभग 80 वर्ष।उसमें से आधा =40 वर्ष तो रात कोबीत जाता है।उसका आधा=20 वर्षबचपन और बुढ़ापे मे बीत जाता है।बचा 20 वर्ष। उसमें भी कभी योग,कभी वियोग, कभी पढ़ाई,कभी परीक्षा,नौकरी, व्यापार और अनेक चिन्ताएँव्यक्ति को घेरे रखती हैँ।अब बचा ही कितना ?8/10 वर्ष।उसमें भी हमशान्ति से नहीं जी सकते ?यदि हम थोड़ी सी सम्पत्ति के लिए झगड़ा करें,और फिर भी सारी सम्पत्ति यहीं छोड़जाएँ, तो इतना मूल्यवान मनुष्य जीवनप्राप्त करने का क्या लाभ हुआ ???स्वयं विचार कीजिय

जब तुम थे .....

जब तुम थे...जब तुम थे...मेरी ज़िन्दगी में शामिलमुझे लगता था, मेरे जीवन का है कुछ आस्तित्वजब तुम थे...मैं हंसती, खिलखिलाती, मुस्कुराती थीमैं इठलाती, इतराती, गुनगुनाती थीमैं लहलहाती, चहचहाती, शर्माती थीमैं सबकी ख़ुशियों में शामिल नज़र आती थीमैं सबको सुकून बांटती थीमैं ग़म का हल भी चुटकियों में निकाल लेती थीमैं दुनिया से लड़ने का माद्दा रखती थीमैं कल्पनालोक में विचरण करती थीइंद्रधनुष के सात रंग मेरे जीवन को रंगीन बनाते थेजब तुम थे...मेरी दुआओं में तुम ही तुम नज़र आते थेमेरी ज़िन्दगी में आई थी बहारमेरी आकांक्षा उमड़ती, घुमड़ती, सरसती थीमेरी सांसें अवाध्य गति से दौड़ती थींमेरी बातों में जादू टपकता थामेरी दुनिया सात रंगों से सजी थींमेरे सपने सजते, संवरते, सुलझते थेमेरे जीवन में उत्साह, उमंग, उन्माद थामेरे जीने का भी मक्सद हुआ करता थामेरे कई शौक...कुलांचे भरते थेहर काम में मेरी उपस्थिति झलकती थी...देखो न....पहले मैं क्या थी...और आज मैं क्या हूं...आज जब तुम मेरी ज़िन्दगी में नहीं....आज इन सबके अर्थ बदल गए हैं...मैं अकेली, असहाय, अनाथ हो गई हूं...सूखे पेड़ की डाली के टूटे पत्तों की तरह बेजान, ...

एक संदेश बहन का

एक बेटी का सन्देश अपने इकलौते भाई कोइस राखी पर भैया ,मुझे बसयही तोहफा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही इकवचन देना तुम ,बेटी हूं मैं , शायद ससुराल से रोज़ न आपाऊंगी ,जब भी पीहर आऊंगी , इक मेहमान बनकरआऊंगी ,पर वादा है, ससुराल में संस्कारों से,पीहर की शोभा बढाऊंगी ,तुम तो बेटे हो , इस बात को नभुला देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ -पापा का बस यही वचनदेना तुम ,मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी , न चाहियेहीरे-मोती ,मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगीदेखूंगी जब माँ-पापा को पीहर में खुशतो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगीअनमोल हैं ये रिश्ते , इन्हें यूं ही नगंवा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बसयही वचन देना तुम ,वो कभी तुम पर यां भाभी परगुस्सा हो जायेंगे ,कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे ,न गुस्सा करना , न पलट के कुछ कहना तुम ,उम्र का तकाजा है, यहभाभी को भी समझा देना तुम ,इस राखी पर भैया मुझे बसयही तोहफा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बसयही वचन देना तुम ।