“आम आदमी पार्टी ”
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अंतत: एक ऐसी राजनीतिक पार्टी का सूत्रपात भी हो ही गया जिसे किसी भी जाति,भाषा, वर्ग , क्षेत्र जैसे परंपरागत आधारों से विलग सिर्फ़ ” आम आदमी ” को केंद्र बना कर स्थापित किया गया है । पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीतिक अव्यवस्था व प्रशासनिक से बुरी तरह त्रस्त ओने के बाद कुछ दु:साहसी लोगों ने इस व्यवस्था में पनप रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध न सिर्फ़ आवाज़ उठाई बल्कि सीधे-सीधे व्यवस्था से जुडे लोगों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया । इतना ही नहीं “सिविल सोसायटी” के नाम दिए गए इस समूह ने जब देश के विधि निर्माताओं द्वारा एक प्रस्तावित कानून में व्याप्त कमियों की तरफ़ ईशारा किया तो उन्हें उनकी नागरिक हैसियत का हवाला देते हुए सियासी हलकों की तरफ़ से चुनौती दी गई कि यदि राजनीति और व्यवस्था के कोई परिवर्तन करना चाहता है तो उन्हें खुद राजनीति में आना चाहिए । . आरोप लगाने वालों ने तो यहां तक कह दिया कि राजनीति और व्यवस्था पर दूर खडे होकर प्रश्न चिन्ह लगाना बहुत ही आसान काम है किंतु उस व्यवस्था का एक भाग बन कर उसे दुरूस्त करने का प्रयास करना कठिन कार्य है । “सिविल ...