man ke rang hazaar...
रे मन.........
रे मन पथिक तू किस ओर चला.........कहाँ जा रहा है यूँ..........किसके लिए इतना व्याकुल है....वो जो दूर से तेरी ओर आ रहा है.....पर कौन जाने वो किस लिए आ रहा है और किसके लिए आ रहा है..........तू तो बावरा है, तुझे कैसे पता कि वो तेरे लिए आरहा है............वो तो अभी तुझसे बहुत दूर है...........पल पल ये दूरी घटती जा रहीहै............वो पास और पास आरहा है..............पर मुझे अभी भी वो ठीक से दिखायी नहीं दे रहा है........उसकी चाल में आकुलता तो है पर चेहरे के भाव नहीं दिखते कि वो मेरे लिए ही हैं............हाय क्या करूँ ???? अरे मन मेरे........तू सुन तो........उसे आने तो दे......उसे बताने तो दे अपने आने की वजह...........जा.......तुझसे क्या पूछूँ तू तो खुद ही चंचल है......पल भर में हवा के पंख पर सवार कहाँ कहाँ हो आता है..........तू क्या जाने मेरे सवालों की गंभीरता...........पर मैं क्या करूं ??? क्या मैं भी चल पडूँ ????? उसी ओर जिधर से वो मेरी ओर आता हुआ दिख रहाहै..........किससे पूछूं ???? दिल से !!!!! अपने भीतर झांक के दिल के कपाट खटखटाए..............वो तो अपने ही भीतर किसी कोने में आँखें भींचे जाने कौन से सपनों में खोया था...............मेरी आहट से दिल थोडा कुनमुनाया..........लगा कुछ तो कहेगा...........पर दिल तो मुह मोड़ कर फिर से खो गया अपनी ही दुनियामें.............अपने सपनों में..........बहुत देर इन्तजार किया.........पर मन की ही तरह इस दिल का भी कोई भरोसा नहीं........... मुझसे ज्यादा तो यह मेरी नज़रों का साथी है.......जो नज़रों को भा जाए ............ये भी उसी का हो जाताहै.........अब जब ये दिल खुद ही उसके सपनों में खोया है तो मुझे क्या बताएगा........जा रे........ तू भी मन की ही तरह छलिया है...........पर अब जानूं कैसे उसके दिल का हाल।
मुझे डर लग रहा है..........कहीं उसका मन किसी और राह पर तो नहीं..........कहीं उसके दिल में कोई और तो नहीं.........हाय मैं क्या करूं ???? मैं तो उसकी ओर खिंचती ही जा रही हूँ.........मेरे मन और दिल की तरह अब मेरे क़दमों पर भी मेरा कोई जोर नहीं रहा..........वो तो उसी की दौड़े जा रहे हैं। वो पास आता जा रहा है..........अब तो उसका चेहरा भी दिख रहा है.............वो खुश है...........नहीं नहीं बहुत खुश............किसी से मिलने मिलने की खुशी में !!!!!! उसके पांवों को जैसे पंख से लग गए हैं.............उसकी चाल में तेज़ी आ गयी है.........पर कोई भी मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रहा.............वो अब भी अनुत्तरित है......क्या वो मेरे लिए आरहा है............अब क्या करूं क्या दिमाग से पूछूं ??? उसके पास बुद्धि का साथ है............वो होशियार है........उसके पास मेरे सवालों का जवाब ज़रूर होगा.............नहीं होगा तो वो खोज लाएगा...........पर किस मुह से जाऊं !!!! जब से दिल से रिश्ता जोड़ा है उसके नाता टूट सा गया है और वैसे भी उससे मुझे डर भी लगता है............क्यूँ ?????? कहा न वो होशियार है........वो उसके चेहरे के भावों को तौलेगा ..........उसकी नज़रों को पढ़ लेगा..........उसके मन को पहचान जाएगा...........उसके दिल की जान जाएगा...........और मैं !!!!!!! पर मैं भी तो यही चाहती हूँ !!!!!!!! पर..........नहीं नहीं मैं दिमाग से नहीं पूछूंगी........मैं अपने क़दमों को नहीं रोकूंगी........मुझे मन की ही तरह उड़ने दो............मुझे दिल की तरह खोने दो............क्यूंकि मुझे पता है कि अगर मैंने दिमाग से पूछा तो वो सच कह देगा और मैं.............उसको अपने दिल का हाल बताये बिना ही...............अपनी बाज़ी लगाये बिना ही यह अंधा सौदा हार जाऊंगी। रे मन तू समझ रहा है न...........
रे मन पथिक तू किस ओर चला.........कहाँ जा रहा है यूँ..........किसके लिए इतना व्याकुल है....वो जो दूर से तेरी ओर आ रहा है.....पर कौन जाने वो किस लिए आ रहा है और किसके लिए आ रहा है..........तू तो बावरा है, तुझे कैसे पता कि वो तेरे लिए आरहा है............वो तो अभी तुझसे बहुत दूर है...........पल पल ये दूरी घटती जा रहीहै............वो पास और पास आरहा है..............पर मुझे अभी भी वो ठीक से दिखायी नहीं दे रहा है........उसकी चाल में आकुलता तो है पर चेहरे के भाव नहीं दिखते कि वो मेरे लिए ही हैं............हाय क्या करूँ ???? अरे मन मेरे........तू सुन तो........उसे आने तो दे......उसे बताने तो दे अपने आने की वजह...........जा.......तुझसे क्या पूछूँ तू तो खुद ही चंचल है......पल भर में हवा के पंख पर सवार कहाँ कहाँ हो आता है..........तू क्या जाने मेरे सवालों की गंभीरता...........पर मैं क्या करूं ??? क्या मैं भी चल पडूँ ????? उसी ओर जिधर से वो मेरी ओर आता हुआ दिख रहाहै..........किससे पूछूं ???? दिल से !!!!! अपने भीतर झांक के दिल के कपाट खटखटाए..............वो तो अपने ही भीतर किसी कोने में आँखें भींचे जाने कौन से सपनों में खोया था...............मेरी आहट से दिल थोडा कुनमुनाया..........लगा कुछ तो कहेगा...........पर दिल तो मुह मोड़ कर फिर से खो गया अपनी ही दुनियामें.............अपने सपनों में..........बहुत देर इन्तजार किया.........पर मन की ही तरह इस दिल का भी कोई भरोसा नहीं........... मुझसे ज्यादा तो यह मेरी नज़रों का साथी है.......जो नज़रों को भा जाए ............ये भी उसी का हो जाताहै.........अब जब ये दिल खुद ही उसके सपनों में खोया है तो मुझे क्या बताएगा........जा रे........ तू भी मन की ही तरह छलिया है...........पर अब जानूं कैसे उसके दिल का हाल।
मुझे डर लग रहा है..........कहीं उसका मन किसी और राह पर तो नहीं..........कहीं उसके दिल में कोई और तो नहीं.........हाय मैं क्या करूं ???? मैं तो उसकी ओर खिंचती ही जा रही हूँ.........मेरे मन और दिल की तरह अब मेरे क़दमों पर भी मेरा कोई जोर नहीं रहा..........वो तो उसी की दौड़े जा रहे हैं। वो पास आता जा रहा है..........अब तो उसका चेहरा भी दिख रहा है.............वो खुश है...........नहीं नहीं बहुत खुश............किसी से मिलने मिलने की खुशी में !!!!!! उसके पांवों को जैसे पंख से लग गए हैं.............उसकी चाल में तेज़ी आ गयी है.........पर कोई भी मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रहा.............वो अब भी अनुत्तरित है......क्या वो मेरे लिए आरहा है............अब क्या करूं क्या दिमाग से पूछूं ??? उसके पास बुद्धि का साथ है............वो होशियार है........उसके पास मेरे सवालों का जवाब ज़रूर होगा.............नहीं होगा तो वो खोज लाएगा...........पर किस मुह से जाऊं !!!! जब से दिल से रिश्ता जोड़ा है उसके नाता टूट सा गया है और वैसे भी उससे मुझे डर भी लगता है............क्यूँ ?????? कहा न वो होशियार है........वो उसके चेहरे के भावों को तौलेगा ..........उसकी नज़रों को पढ़ लेगा..........उसके मन को पहचान जाएगा...........उसके दिल की जान जाएगा...........और मैं !!!!!!! पर मैं भी तो यही चाहती हूँ !!!!!!!! पर..........नहीं नहीं मैं दिमाग से नहीं पूछूंगी........मैं अपने क़दमों को नहीं रोकूंगी........मुझे मन की ही तरह उड़ने दो............मुझे दिल की तरह खोने दो............क्यूंकि मुझे पता है कि अगर मैंने दिमाग से पूछा तो वो सच कह देगा और मैं.............उसको अपने दिल का हाल बताये बिना ही...............अपनी बाज़ी लगाये बिना ही यह अंधा सौदा हार जाऊंगी। रे मन तू समझ रहा है न...........
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