जो होना है सो ...
कहते हैं कि एक राजा ने ऐलान किया कि शहर भर के सभी ज्योतिषीयों को बुलाया जाय, हम उन्हें तोहफे में अशर्फियाँ देंगे। एक से बढ़कर एक ज्योतिषी इनाम के लालच में राजा के दरबार पहुंच गए। राजा ने आदेश दिया कि सबको बंदी बनाकर सलाखों के पीछे डाल दो। ज्योतिषी कहने लगे, हे राजन! हमारा कसूर तो बताओ। राजा ने कहा यदि तुम सच में ज्योतिषी होते तो यहां क्यों आते? ,
यह तो कथा हुई लेकिन वास्तव में भविष्यवाणी करने वाला भारत का सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति था बेजान दारूवाला। जिसदिन कोरोना के चलते मृत्यु हुई, वह खुद के भविष्य का अंदाजा तक नहीं लगा सका था। कुछ हदतक हम कुछ चीजों का अवलोकन करते हैं, वही अवलोकन हमारी भविष्यवाणी होती है। यह एक कला है ठीक जैसे रियलिटी शो में कई हुनरबाज आकर अपनी अचंभित करने वाली कला का प्रदर्शन करते हैं।
विदेशियों ने टेलीविजन, मोबाईल, मीडिया, सोशल मीडिया, तकनीक इत्यादि को ज्ञान और विज्ञान के प्रसार के लिए इस्तेमाल किया जबकि भारत ने अंधविश्वास, पाखण्ड, साम्प्रदायिकता फैलाने तथा झगड़ा करवाने, 11 लोगों को मैसेज भेजकर पुण्य कमाने इत्यादि के लिये इस्तेमाल किया। धारावाहिक, फिल्मों, विज्ञापनों से लेकर न्यूज़ और पत्रकारिता तक स्पष्ट दिखता है कि लोगों ने कुतर्क कर तर्क, ज्ञान, विज्ञान, विचार का गला घोंटा गया है।
सुबह सुबह जहां भविष्यवाणी करने वाले बाबाओं को बिठाया जाता है, अखबारों में राशिफ़ल बताया जाता है, वहाँ आपदा, विपदा पर भविष्यवाणी नहीं होती, देश की स्थिति सुधार पर भविष्यवाणी नहीं होती, आगे क्या क्या होगा पता नहीं फिर भी शुभ, अशुभ, फल, लाभ पर कोरा ज्ञान चलता है और फिर रात को आकर अमीर बनने का यंत्र बेचते हैं। जिसकी कीमत भी साथ लिखी होती है। कितने अमीर बने, कितने सफले बने, इसका प्रमाण पूछो तो बेवजह भावनाएं आहत हो जाती हैं।
यदि इस देश में केवल पत्रकार अथवा न्यूज चैनल्स ही ईमानदार हो जाएं तो मजाल है इस देश को कभी कोई नुकसान हो। ऐसा नहीं कि ज्योतिष कुछ नहीं है लेकिन एक मामूली कला से अधिक सच में कुछ नहीं है। अन्यथा देश में छोड़ो किसी भी व्यक्ति के जीवन में कभी आपदा,विपदा नहीं आ सकती थी। जिस प्रकार बन्द पड़ी घड़ी दिन में दो बार सही समय बताती है ठीक उसी प्रकार ज्योतिषी में 50 प्रतिशत बातें "होंगी या फिर नहीं होंगी" पहले से ही सत्य है, बाक़ी अवलोकन, कला प्रदर्शन है।
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