लेखन
लिखने में भी एक अलग ही सुकून है,
लिखकर हम अपने आप को बहुत हल्का महसूस करते हैं। वे सब बातें जो हम सोचते हैं और देखते हैं या किसी से सुनते हैं। वे सभी बातें हमारे दिमाग में इकट्ठा हो जाती हैं,,, और हमारे दिमाग में चलती रहती हैं,
क्योंकि जो बातें हमारे दिलों दिमाग में होती हैं, उनमें से हम कुछ बातें ही दूसरे व्यक्तियों के सामने व्यक्त कर पाते हैं। बाकी बातें हमारे दिमाग में ही रह जातीं हैं,जिससे हम अपने आप को बहुत थका-थका सा महसूस करते हैं, बातों में भी बोझ होता है,, अगर इसे कम न किया जाए तो वह हमारा मानसिक संतुलन बिगाड़ देता है। इससे हमारे अंदर चिड़चिड़ाहट और गुस्सा उत्पन्न होता है,, आपने भी देखा होगा कुछ लोग ऑफिस से आने के बाद घर में अपनी पत्नी व बच्चों से कुछ रुखा व्यवहार करते हैं।
ऐसा नहीं है कि वे लोग अपनी पत्नी या बच्चों से प्यार नहीं करते है। बस वह अपने ऑफिस का फ्रस्ट्रेशन जाने-अनजाने घर में निकालते हैं। लेकिन लेखन एक ऐसी कला है,,, जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क को काफी हद तक शांति प्रदान कर सकते हैं।
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