खुद को बदले

(नया साल,नई बात, उम्मीदों की)

सिर्फ़ कैलेंडर बदल रहा है, एक तारीख़ बदल रही है, लेकिन आप ओर हम  तो वही हैं जो पहले थे, और हमारी परेशानियाँ भी वही हैं, और परिस्थितियाँ भी.

ऐसा कई लोग कहते हैं कि नया साल आने से क्या ही बदलता है. ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि नया साल मतलब एक नई डायरी, एक नया चैप्टर और एक नई सुबह.
 माना कि आपकी परिस्थितियाँ नहीं बदलतीं, लेकिन आप इसे एक बुकमार्क तो बना ही सकते हैं न. 

नया साल और नई तारीख़ एक बहाना हो सकता है, कि आप कुछ नया सोचें, प्रण लें कुछ नया करने का या नए तरीक़े से करने का, एक नई सोच को जीने का, एक नए ख़्याल को परवाज़ देने का, और एक लड़ने के संकल्प का. 

मानता हूँ कि एक तारीख़ भर बदल जाने से कुछ नहीं बदलता, लेकिन इसे एक मौके की तरह तो ले ही सकते हैं. दिल की सुनने का और अपने मन की करने का नियम तो बना ही सकते हैं. वो करने का मन बना सकते हैं जो करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते.

कभी-कभी कुछ चीज़ों को नज़रिए के तराज़ू से तौल लेना चाहिए, ताक़ि याद रहे कि ज़िंदगी ऐसे तो हर लम्हे में है लेकिन जो हम भूल चले हैं उसे नए पन्ने से एक बार फ़िर शुरू करते हैं. हँसना शुरू करते हैं, जीना शुरू करते हैं, और शुरू करते हैं बाहों को फैलाकर पँखों को आज़माना. 

क्या फ़र्क़ पड़ता है कि कौन क्या कहेगा, या क्या सोचेगा. आप अपने आईने में ख़ुद को कैसे देखते हैं ये सबसे पहली ज़रूरत है, और बाक़ी सब उसके बाद की बात. इस नए साल आईने में दिख रहे शख़्स को समझने की कोशिश कीजिए, जो आपके भीतर ही कहीं है, लेकिन उसकी आवाज़ पहुँच नहीं पाती आप तक जाने क्यूँ. 

थोड़ा डुबकी लगाइए ज़िंदगी की तलैया में, और फ़िर देखिए कि भीगने का मज़ा क्या है. क्यूँ नहीं शुरू करते आज ही से, या जब भी मौका मिले तब से.

 ए बाबू मोशाय! ज़िंदगी बहुत छोटी है रे! 

(बाकी थारी मर्ज़ी)

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