संदेश

अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज़िंदगी

कभी-कभी ज़िंदगी ख़्वाब सी लगती है, लेकिन मुश्किल ये है कि ख़्वाब अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है। हर वक़्त चिंता या बेवजह परेशानी में घिरे रहना किसी भी मुश्किल का हल नहीं होता है, इसलिए ख़ुश रहने और अपने आप में जीने से बड़ी कोई बात नहीं है। एक मित्र हैं मेरे, वैसे तो ठीक ही हैं लेकिन बड़े परेशान जीव हैं.. बिना किसी कारण के तनाव और परेशानी में कैसे रहा जाता है, ये उनसे कोई भी सीख सकता है..उनकी ज़िंदगी में कुछ ठीक न हो, तो चिंताग्रस्त रहते ही हैं..बल्कि कोई अच्छी बात भी हो तो भी चिंता में रहते हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए.. दरअसल, ज़िंदगी बड़ी आसान सी है लेकिन पता नहीं क्यूँ हम बेवजह की धारणाओं और शिगूफों में उलझकर अपने चैन को तीली दिखा देते हैं..जो होना है, उसे हम रोक नहीं सकते बल्कि सिर्फ़ कोशिश कर सकते हैं कि सब सही हो, और कोशिश करने के बाद सब कुछ छोड़ दें चाहिए उस सर्वज्ञ पर, कि जो होगा वो अच्छा ही होगा...बेवजह चिंताग्रस्त रहने से तो कुछ नहीं होता न..बस मुश्किलें बढ़ती ही हैं.. वैसे भी, जब से होश संभालो बस मुश्किलें ही दिखती हैं ज़िंदगी में, और हम बेवजह की चिंताओं और ईर्ष्या में घुलकर दुबले हुए...

आजादी

🇮🇳 मुबारक़बाद आप सभी को, उस दिन के लिए जिस दिन ये देश आज़ाद हुआ..और बेइन्तहां ख़ुशी होना भी चाहिए और मैं ख़ुश हूँ भी.. लेकिन मैं बहुत ज़्यादा ख़ुश उस दिन होऊँगा, जिस दिन इस देश की सड़कें, मंदिर और मदरसे लड़कियों के लिए सुरक्षित होंगे, हम अपने लड़कों को औरतों का सम्मान करना सिखा सकेंगे, कोई किसान आत्महत्या नहीं करेगा, कोई ग़रीब भूख से नहीं मरेगा, हर बच्चा अच्छे स्कूल जा सकेगा, साफ़ पानी और अच्छा खाना सभी का बेसिक अधिकार होगा, हर एक के पास रोज़गार होगा, हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा नहीं होगा, इंसान की जान की क़ीमत कम से कम एक गाय से ज़्यादा होगी..लोग अपनी विरासत में ज़मीन-जायदाद के बजाय अच्छे विचार छोड़ेंगे..एक इंसान अपने तऱीके से ज़िंदगी को जीना चाहे तो लोग उसे जज न करें और उसके घरवाले उसे अपने तऱीके से जीने के लिए तानों के रूप में क़ीमत न वसूलें.. कितना कुछ और है जो मैं चाहता हूँ कि सच हो, लेकिन हर चीज़ सच नहीं हो सकती..तो हम सोच लेते हैं कि कभी तो सब अच्छा होगा, और न भी हो तो उम्मीद तो है ही, और सबसे ज़्यादा हमारी कोशिशें तो हैं ही न..तो कोशिश करिए, अपने मन का करिए और प्रेम कीजिये, यही असल आज़ादी है. 

मन के मते

आप सोचते हैं कि कल जी लेंगे, अभी तो कितनी ही ज़िंदगी पड़ी है आगे,और वो कल कभी आ नहीं पाता. सबसे पहले आता है बचपन..आप बहुत कुछ मन के मुताबिक़ करते हैं, भागते हैं-दौड़ते हैं-गिरते हैं, दुनियादारी तब भी चलती रहती है, लेकिन उस वक़्त आप अपने मन के हिसाब से थोड़ा-बहुत चलना सीख रहे होते हैं..कितनी ही बार इसलिए कूट दिए जाते हैं कि आप वैसे नहीं हो जैसे कि आपके आस-पड़ोस के टॉपर्स बच्चे हैं. अरे छोड़िये ऐसे लोगों के बारे में सोचना, हर बच्चा अलग होता है, और यही समझना जरूरी भी है हर बच्चा आईआईटी या आईआईएम नहीं जाता, बहुत सारे अपनी ज़िंदगी में और कुछ ढंग का करते हैं,बिज़नेसमैन और साइंटिस्ट लोग के अलावा कुछ लोग हमें बाइचुंग भूटिया, दीपा कर्माकर, सचिन, राजकुमार राव, मोहित चौहान, एमएफ हुसैन, जैसे भी तो चाहियें.. फिर आप बड़े हो जाते हैं, और सोचते हैं दुनिया बदल देंगे..थोड़ा-बहुत मन का करते भी हैं लेकिन उनमें से ज़्यादातर ऐसा होता है जो बस संगति के कारण होता है क्यूँकि आप आज़ादी की रौ में बह जाते हैं, घर और स्कूल से बाहर कॉलेज लाइफ को इंजॉय तो करते हैं आप लेकिन बहुत कम होते हैं जो अपने बचपन को इन सबके बीच ज़िंदा रख पात...