दान
दान का फल!!!!!
दान भी दुःख और भोग का कारण बन सकता हैं।दान देने से पहले जरा सोच लें ?* दान करना हमारे समाज में अति शुभ माना गया है। लेकिन कई बार यह दान दुःख का कारण भी बन जाता है।
हमारे आसपास ऐसे कई व्यक्ति है जो कि ज्यादा दान या ज्यादा धर्म में लीन रहते है। फिर भी कष्ट उनका व उनके परिवार का पीछा नहीं छोड़ता तब हम अपने को सांत्वना स्वरूप यह कह कर संतोष करते है कि भगवान शायद हमारी परीक्षा ले रहा है।
अरे भाई भगवान् कोई तुम्हारी परीक्षा-वरीक्षा नही ले रहा, बल्कि वो तो तुम्हारे ही कर्मो का फल तुम्हे दे रहा है। बहुत दान धर्म करने के बाद भी सुख नही मिलता क्योकि तुम्हारे द्वारा दिया दान ही दुःख का कारण बन जाता है।
एक समय की बात है। एक बार एक गरीब आदमी एक सेठ के पास जाता है और भोजन के लिए सहायता मांगता है।
सेठ बहुत धर्मात्मा होता है वो उसे पैसे देता है। पैसे लेकर व्यक्ति भोजन करता है, और उसके पास कुछ पैसे बचते है जिससे वो शराब पी लेता है शराब पीकर घर जाता है और अपनी पत्नी को मारता है।पत्नी दुखी होकर अपने दो बच्चो के साथ तालाब में कूद कर आत्म हत्या कर लेती है। कुछ समय बाद उस सेठ की भी असाध्य रोग से मृत्यु हो जाती है मरने के बाद सेठ जब ऊपर जाता है तब यमराज बोलते है कि इसको नरक में फेंक दो।
सेठ यह सुनकर यमराज से कहता है कि आपसे गलती हुई है, मैने तो कभी कोई पाप भी नही किया है, बल्कि जब भी कोई मेरे पास आया है मेने उसकी हमेशा मदद ही की है। इसलिये मुझे एक बार भगवान् से मिला दो। तब यमराज उसे बोलते है कि हमारे यहाँ तो गलती की कोई संभावना नही है, गलतिया तो तुम लोग ही करते हो। पर सेठ के बहुत कहने पर यमराज उसे भगवान् के समक्ष पेश करते है।
भगवान् के सामने जाकर सेठ बोलता हे प्रभु मैने तो कोई पाप किया ही नही है तो मुझे नरक क्यों दिया जा रहा है। तब भगवान् उसे उस गरीब व्यक्ति को पैसे देने वाली बात बताते है कि उस व्यक्ति की पत्नी और दो बच्चो की जीव हत्या का कारण तू है।
तू उसे पैसे न देता तो वो शराब पीकर अपनी पत्नी को दुःख नही देता। सेठ बोलता है प्रभु मेने तो एक गरीब को दान दिया है और शास्त्रों में भी दान देने की बात लिखी है। तब भगवान् ने कहा कि दान देने से पहले *पात्र की योग्यता* तो परखनी चाहिए की वो दान लेने के योग्य है या नहीं, या उसे *किस प्रकार के दान* की जरुरत है।
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