काला धन
काला धन क्या है......इसका वास्तविक अर्थ जनता और सरकार के लिए भिन्न है........सरकार के लिए जिस धन का कोई रिकार्ड नही है वो काला धन है......अगर कोई रिक्शे वाला फुटकर में कमाई करता है और उसके धन का कोई सरकारी रिकार्ड नही है तो सरकार के अनुसार उसका धन काला है.......और अगर कोई भ्रष्ट व्यापारी ५ करोड़ की चीज़ निर्यात करके उसे १०० करोड़ की दिखा दे.....और उस पर टॅक्स भी दे दे....तो उसका धन सफेद है.......
आम लोग ये समझते हैं की बेईमानी से कमाया धन काला धन है.......यहाँ एक ग़रीब मजदूर का पैसा भले ही उसने मेहनत से कमाया हो लेकिन उसका कोई सरकारी रिकार्ड नही है इसलिए सरकार के अनुसार वो काला धन है......वहीं भ्रष्ट लोग सीए के मध्यम से काले धन को सरकारी रिकार्ड में लाकर सफेद कर लेते हैं.........घर पर नकद छुपा कर रखने की परंपरा दशकों पहले समाप्त हो चुकी है.......लेकिन आम लोग इस बात को नही समझ रहे......
मान लीजिए की पाकिस्तान को भारत में बम विस्फोट करना है..........तो पाकिस्तान किसी भारतिया अभिनेता से संपर्क करेगा.......आईएसआई विदेश में अभिनेता का शो आयोजित करवाएगी......अभिनेता शो की कमाई की आड़ में पाकिस्तान से दिया हुआ धन भारत ले आएगा.......उस पर भी वो सरकार को टॅक्स देगा.....फिर वो पहले से तय योजना के अनुसार अपना कमीशन निकाल कर बाकी पैसा किसी इस्लामिक ट्रस्ट को दान कर देगा.......फिर इस्लामिक ट्रस्ट सत्तारूड पार्टी को अनुदान के रूप में रिश्वत देकर धमाका करवाने के लिए आवश्यक सहयोग प्राप्त करलेगा.......और निर्दोष नागरिक मारे जाएँगे.......कहीं भी नकद का प्रयोग नही होगा......सारा धन सरकारी रिकार्ड में रहेगा और सफेद होगा......
काले धन वालों को पकड़ना है तो उन्हें सीधे गर्दन पकड़ कर दबोचना होगा......ये नोट बंदी से उनका कुछ नही बिगड़ेगा......सरकार द्वारा नोट बंदी के फ़ैसले की वास्तविक मंशा कुछ और रही होगी......लेकिन आम लोगों को पहले काले धन की परिभाषा समझनी होगी......बेईमानी से कमाए धन को लोग किसी ना किसी मध्यम से सरकारी रिकार्ड में लाकर सफेद कर लेते हैं......लेकिन हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी अपने मेहनत के पैसे को सरकारी रिकार्ड में नही ला पाती तो उसका अर्थ ये नही की उसका धन काला है.....
मोदी की ग़लत आर्थिक नीतियों ने बैंकों को दीवालिया होने के कगार पर ला दिया है और इस लिए इस योजना के माध्यम से सरकार ने बैंकों में पैसा बढ़ाने का खेल खेला है.......जो की अंदर ही अंदर जर्जर हो रही हमारी अर्थ व्यवस्था को कुछ समय के लिए बचा कर रखने का एक अस्थाई प्रयास है....
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