1..
मैं शब्दों में जिंदगी एक किताब हूँ।
या यूँ कह लो एक जिवंत ख्वाब हूँ।
एक अरसे से भी ज्यादा की खोज हूँ मैं।
या यूँ कह लो कागज पर उभरे भाव हूँ।
अनगिनत लम्हों का पिटारा हूँ मैं।
या यूँ कह लो बस एक जवाब हूँ।
बड़ा आसान है मुझ में समाना यूँ तो।
या यूँ कह लो खुद में एक समाज हूँ।
हाँ बहुत कमीयां है मुझ में अभी।
या यूँ कह लो अभी एक शुरुवात हूँ।
जिन्दा हूँ बदोलत जो जी रहे हैं मुझको।
या यूँ कह लो आप सब की शुक्रगुज़ार हूँ।
मुझ से जुड़ जाने का शुक्रिया ।
मेरा अस्त्तित्व बनाने का शुक्रिया।
मेरे शब्दों को सरहाने का शुक्रिया।
मुझ में खुद को पाने का शुक्रिया।
आप से ही जुडी है डोर जीवन की।
या यूँ कह लो आपका ही किस्सा हूँ।।
मैं शब्दों में जिंदगी एक किताब हूँ या यूँ कह लो जीवंत एक ख्वाब हूँ।।
2...
ना कोई मंजिल, ना अपना कोई ठिकाना आजकल,
हमने सीख लिया है यूँ ही दिन बिताना आजकल
ये सोचने की बीमारी न जाने कब इतनी बढ़ गयी,
सब कुछ लगता है लिखने का बहाना आजकल
जीया है अब तक हर एक पल ख्वाइश से,
शुरू किया है मन को बेड़ियाँ पहनाना आजकल
वो पंछी जो मेरे हर शब्द का हिस्सा होते थे कभी,
उन्हें भाने लगा है गैर की छत पे चहचाना आजकल,
हीर राँझा भी हँसते होंगे ऐसे हालातों में ,
कितना गुमनाम है हर दीवाना आजकल,
सुना था मैंने तो शिक्षा सुलझाती हैं हर गुत्थी,
फिर क्यूँ पढ़ लिख के भी उलझा हैं सारा जमाना आजकल
वो समझाते रहे और मुझे समझ नही आया,
क्यूँ सब कुछ बन गया है पैसे कमाना आजकल,
मकान तो बड़े बड़े दीखते हैं हर गली में,
फिर ख़तम सा क्यूँ लगता है घराना आजकल,
चलें भी तो कितना, जाएँ भी तो कहाँ,
बेईमानी सा लगता है हर कदम उठाना आजकल।
3...
कुछ आंखें हैं जिन्होंने शायद कभी कोई ख्वाब नहीं देखा ।
कुछ आंखें हैं जिन्होंने शायद कभी कोई ख़ास नहीं देखा ।।
कुछ आंखें हैं जिन्हें खुबसुरती का मतलब नहीं पता ।
कुछ आंखें हैं जिनके हिस्से बस अँधेरा है लिखा ।।
कुछ आंखें जिन्हें अस्तित्व की तलाश है ।
कुछ आंखें हैं जिन्हें रौशनी की आस है ।।
कुछ आखें ख़ामोशी तोडना चाहती हैं ।
कुछ आखें जिंदगी जोड़ना चाहती हैं ।।
कल का पता क्या आज प्रण करना है ।
जो मर गए तो भी जीवन रोशन करना है ।।
नेत्र दान करें अभी नहीं मरने के बाद ।
इस लालची दुनिया में कोई दिल से करेगा याद ।।
4...
.एक आवाज़ हूँ.. ।।
..एक आवाज़ हूँ..
..मगर सुनायी नहीं देती..
..क्योंकि दबा दी गयी हूँ..
..वहशतों के शोर में.. ।।
..वर्ना उस जलती हुयी बस्ती से गुजरी हूँ मैं..
..बस मुझे सुना नहीं गया..
..क्योंकि दबा दी गयी हूँ..
..वहशतों के शोर में.. ।।
..मुझे सुना नहीं गया..
..इसलिये चीख़ होना चाहती हूँ अब..
..अस्तित्व का सवाल जो है.. ।।
..अपने ही सीने में..
..दम नहीं तोड़ना चाहती..
..अब सुने जाना चाहती हूँ..
..आँधियों की तरह.. ।।
..क्योंकि सब्र थक चुका है..
..क्योंकि जिद अपने उफ़ान पर है..
..क्योंकि सुकून अब बेचैन करने लगा है..
..इसलिये चीख़ होना चाहती हूँ अब.. ।।
..एक आवाज़ हूँ..
..सुने जाना चाहती हूँ अब.. ।।
5...
..सुबह घर से निकलता हूँ.. तब जरूरतें आगे आगे
चलती हैं.. दिन भर जरूरतों का पीछा करने के बाद.. जब लौट कर आता हूँ शाम
ढले खुद के पास.. बड़ा सुकून सा महसूस होता है.. ख़ास कर शाम अगर कोहरे में
लिपटी धुँआ धुँआ सी हो.. तब तो क्या कहने.. ।
..और इस तरह मैं लौट आता
हूँ.. अगली सुबह फिर चले जाने के लिए.. मेरे पीछे पीछे जरूरतें भी लौट आती
हैं घर.. अब तो ये भी घर का जरूरी हिस्सा हो गई हैं.. देर रात तक जरूरतें
सोती नहीं हैं.. जागती रहती हैं.. जगाती रहती हैं.. ।
..शायद हर आम आदमी की यह एक सी कहानी है.. ।।
6...
कभी कभी लगता है
मैं कहाँ हूँ
मेरा अस्तित्व कहाँ हैं
यूँ लगता है
खुद से मिलने के लिए
कतार में
सबसे पीछे खड़ा हूँ मैं
7...
..चेहरे पर सुकून बस दिखाने भर का है.. ।
..वरना बेचैन तो मैं ज़माने भर का हूँ.. ।
8...
..मुहब्बत एक खेल था तुम्हारे लिये खैर.. ।
..हमने हार जाना पसंद किया अपनी मर्जी से.. ।।
9...
..आज आईना देख हमने..
..एक मुस्कराहट खर्च कर दी.. ।
..सोचा क्या पता अगली बार..
..दोनो टुकड़ों में ही मिले.. ।।
10...
..समन्दरों से मिला.. तो हैरानी जाती रही.. सही कहते हैं लोग..
..बहुत गहरे शख्स.. अक्सर.. बहुत भीतर तक टूटे होते हैं..
..मैं नहीं कहता.. बिखरे हुओ से सुना है..
..एक तो मेरे भीतर ही रहता है.. कमबख्त.. ।
11...
..कौन यकीन करेगा इस कहानी पर.. ।
..कुछ हर्फ़ लिक्खे हैं मैंने पानी पर.. ।।
12...
..मेरे घर के आईने टूटे.. मुझसे नाउम्मीद होकर.. !
..मै आईनों से ज्यादा टूटा.. उसके करीब होकर.. !!
13...
..आजमाईशों की पैदाइश हूँ और.. !
..टूट जाने का हुनर रखता हूँ.. !!
..युँ तो एक गुजरता सा लम्हा हूँ.. !
..एक उम्र जितना असर रखता हूँ.. !!
..दरिया में कश्ती.. लेकर निकला हूँ.. !
..मै तुफानो की खबर रखता हूँ.. !!
..मिट्टी के घरोंदे बनाने की जिद और.. !
..मै समन्दर किनारे घर रखता हूँ.. !!
..ठहर जाना.. मेरी फितरत नही है.. !
..मै सफर मे भी एक सफर रखता हूँ.. !!
..एक शख्स चलता है लोगो के साथ.. !
..और कई साये अपने भीतर रखता हूँ.. !
14... ..ऐ मेरे मौला तेरे बन्दों से कह.. !
..कुछ करम करें अनाथों पर.. !!
..ये भी तेरी ही दुनिया है.. !
..जो पलती है फ़ुटपाथों पर.. !!
15... ..ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया..
..ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया..
..ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी..
..निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी..
..ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..यहाँ इक खिलौना है इसां की हस्ती..
..ये बस्ती हैं मुर्दा परस्तों की बस्ती..
..यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..जवानी भटकती हैं बदकार बन कर..
..जवान जिस्म सजते है बाज़ार बन कर..
..यहाँ प्यार होता है व्योपार बन कर..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है..
..वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है..
..जहाँ प्यार की कद्र कुछ नहीं है..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया..
..जला दो, जला दो, जला दो..
..जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया..
..मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया..
..तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया..
..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. !!
..गीतकार - साहिर लुधियानवी साहब.. !!
..फ़िल्म - प्यासा.. !!
..निर्देशक - गुरू दत्त.. !!
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