उत्तराखंड में तबाही
उत्तराखंड में हुई भारी तबाही ने विकास के मौजूदा मॉ़डल को लेकर गंभीर बहस खड़ी कर दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या ये तबाही सिर्फ कुदरत का कहर है, या इसमें हम इंसानों का भी कोई योगदान है। जानकारों का साफ कहना है कि बांधों, बिजली परियोजनाओं और सड़कों के लिए पहाड़ों को छलनी करना बंद नही किया गया तो कुदरत और ज्यादा कहर बरसा सकती है। कुदरत के इस रौद्ररूप के आगे सब बेबस नजर आए एक बार फिर साबित हुआ कि कुदरत की ताकत से बढ़कर कोई ताकत नहीं। इसके कहर की कोई काट नहीं, लेकिन जरा ठहरिये कुछ और भी सवाल मुंह बाए खड़े हैं। सवाल ये कि क्या उत्तराखंड में खून की बारिश और मौत का सैलाब लाने वाले इस कहर के पीछे सिर्फ कुदरत की नाराजगी है या फिर इसका कोई और सबब भी है कहीं ऐसा तो नहीं कि कुदरत के सामने बेहद बौना नजर आने वाला इंसान, अपनी आसमान छूती हवस का खुद शिकार हो गया। सदियों से तपस्वियों की तरह अटल खड़े पहाड़ों को इंसानी लालच ने इस कदर छलनी किया कि हर तरफ ज़हर के सोते फूट पड़े, जिनकी हर बूंद में मौत का पैगाम है। अफसोस! हिमालय की गोद में बसे इस पहाड़ी राज्य की माटी की धड़कन को करीब से महसूस करने...