भारत पाक संबंध
अगर हम भारत पाक संबंधों की चर्चा करें तो भारत हमेशा से ही शान्ति व मानवता के उद्देश्यों को लेकर विश्व स्तर पर अपनी छवि की नई छाप समय समय पर छोड़ता रहा है.लेकिन पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश होने के बाद भी आतंकवाद अशांति एवं मानवता विरोधी तत्वों के उन्मूलन में कहीं पीछे नहीं रहा है .यही कारण है भारत में शान्ति भंग करने एवं आतंकवादी गतिविधियाँ अपनाने में पाकिस्तान के कदम बड़ते ही रहे हैं , जिनकी समय समय पर विश्व की अनेक मानवतावादी एवं शान्ति सद्भावना वाले राष्ट्रों ने इस की निंदा भी की है। जिस से पाकिस्तान विश्व स्तर पर अपनी राजनीतिक गतिविधि तथा हिंसात्मक क़दमों के कारण बड़े पैमाने पर आलोचना का पात्र बनता रहा है। यहाँ तक की भारत पाकिस्तान के बीच 1947, 1965, 1971, और कारगिल में चार युद्ध हुए. इन युद्धों से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. दोनों देशों का बहुत नुकसान हुआ और विकास अवरुद्ध हो गया. दोनों देशों द्वारा की गयी गरीबी, बीमारी, भुखमरी और बेरोज़गारी मिटाने की घोषणाये निरर्थक साबित हुईं. पाकिस्तान नें भारत का खून बहाने की घोषणा कर रखी है.यह उसकी घोषित राज्य नीति बन चुकी है. एक दूसरे को नीचा दिखाने की चाहत और बदला लेने की भावना ने दोनों देशों की शान्ति को भंग कर दिया है. वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तान और भारत एक दूसरे के पड़ोसी हैं. जैसा हम समझ सकते हैं, पड़ोसी कैसा भी हो उसके के साथ रहना एक विवशता है क्योंकि आप मित्र तो बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदला जा सकता है. हमारा एक हज़ार साल से ऊपर का सांझा इतिहास, संस्कृति और परंपरा है. हमें सोचना पड़ेगा कि इतना सब कुछ सांझा होने के बावजूद ऐसा क्या है जो हमें बाँट रहा है. क्या हम अनंत काल तक एक दुसरे का खून बहाते रहेंगे. अगर उत्तर है नहीं तो प्रश्न यह उठता है कि फिर क्यों न एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहा जाय. क्या यह संभव है. मुझे दोनों तरफ के राजनीतिज्ञों, सेना से कोई उम्मीद नहीं है. इस सम्बन्ध में दोनों देशों की सिविल सोसाईटी को पहल करनी होगी. हमें इतिहास की गठरी जो विरासत में मिली है उसे रद्दी की टोकरी में फेंकना होगा. एक दुसरे के इज्ज़त करना सीखना होगा. दोनों तरफ से बगैर किसी रुकावट के आवागमन होना चाहिए. साहित्य, शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीकी, स्वास्थय के क्षेत्र में आदान प्रदान होना चाहिए. कलाकारों, फिल्मों का आदान पदान होना चाहिए. दोनों देशों के बीच वाणिज्य का विस्तार होना चाहिए. मैं यह नहीं कहता की इन उपायों से सारी समस्याओं का हल निकल आएगा, लेकिन धीरे धीरे आपसी समझदारी और सहयोग के लिए वातावरण का निर्माण हो सकता है. यह काम इतना आसान नहें है, लेकिन हमारे पास विकल्प भी क्या है

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