राजेश खन्ना
हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना का निधन हो गया है। 'अराधना',
'अमर प्रेम', 'सफर', 'कटी पतंग' और 'आनंद' जैसी फिल्मों में जीवंत ऐक्टिंग
करने वाले राजेश खन्ना ने बुधवार दोपहर बांद्रा स्थित अपने घर 'आशीर्वाद'
में अंतिम सांस ली। उन्हें एक दिन पहले ही लीलावती अस्पताल से छुट्टी दी गई
थी। इसके बाद बुधवार को तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें घर पर ही वेंटिलेटर
पर रखा गया था। उनका अंतिम संस्कार कल 11 बजे होगा।
'आनंद' फिल्म में 'मौत तो एक कविता है' और 'जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए'... जैसे संवादों के जरिए हिंदी फिल्म दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा जाने वाले काका (राजेश खन्ना) ने सचमुच बड़ी जिंदगी जी ली। जिस दौर में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी तो कहा जाता था 'ऊपर आका, नीचे काका'। लड़कियों के बीच तो उनकी दीवानगी का आलम यह था कि कई लड़कियों ने उनकी तस्वीर से शादी कर ली थी।
70 वर्षीय राजेश खन्ना को अप्रैल से ही कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था और उन्हें कल ही लीलावती अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। 20 जून को खबर आई थी कि उन्होंने भोजन करना बंद कर दिया, जिसके बाद उनकी हालत खराब होती चली गई। जिस समय राजेश खन्ना ने दम तोड़ा उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया, बेटी रिंकी व ट्विंकल खन्ना और दामाद अक्षय कुमार सहित पूरा परिवार उनके पास मौजूद था। जैसे ही उनके निधन की खबर फैली बॉलिवुड के तमाम स्टार्स उनके घर पहुंचने लगे हैं और फैन्स भी जमा होने लगे हैं। उनके भर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। 1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में 'आखिरी खत' नामक फिल्म में काम किया था। इसके बाद 'राज', 'बहारों के सपने', 'औरत के रूप' जैसी कई फिल्में उन्होंने की लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में 'आराधना' से मिली। इसके बाद एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने 'कटी पतंग', 'आनन्द', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी', 'अंदाज' नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराए रखा। बाद के दिनों में 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम', 'हमशक्ल' जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। बाद में वह राजनीति में आए और 1991 में वह नई दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए।
'आनंद' फिल्म में 'मौत तो एक कविता है' और 'जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए'... जैसे संवादों के जरिए हिंदी फिल्म दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा जाने वाले काका (राजेश खन्ना) ने सचमुच बड़ी जिंदगी जी ली। जिस दौर में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी तो कहा जाता था 'ऊपर आका, नीचे काका'। लड़कियों के बीच तो उनकी दीवानगी का आलम यह था कि कई लड़कियों ने उनकी तस्वीर से शादी कर ली थी।
70 वर्षीय राजेश खन्ना को अप्रैल से ही कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था और उन्हें कल ही लीलावती अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। 20 जून को खबर आई थी कि उन्होंने भोजन करना बंद कर दिया, जिसके बाद उनकी हालत खराब होती चली गई। जिस समय राजेश खन्ना ने दम तोड़ा उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया, बेटी रिंकी व ट्विंकल खन्ना और दामाद अक्षय कुमार सहित पूरा परिवार उनके पास मौजूद था। जैसे ही उनके निधन की खबर फैली बॉलिवुड के तमाम स्टार्स उनके घर पहुंचने लगे हैं और फैन्स भी जमा होने लगे हैं। उनके भर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। 1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में 'आखिरी खत' नामक फिल्म में काम किया था। इसके बाद 'राज', 'बहारों के सपने', 'औरत के रूप' जैसी कई फिल्में उन्होंने की लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में 'आराधना' से मिली। इसके बाद एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने 'कटी पतंग', 'आनन्द', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी', 'अंदाज' नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराए रखा। बाद के दिनों में 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम', 'हमशक्ल' जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। बाद में वह राजनीति में आए और 1991 में वह नई दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए।
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