कुछ अनकही
कितने ही लोग होंगे इस दुनिया में जो हर रोज एक नया चेहरा ओढ़कर निकलते हैं। पर अपने भीतर तूफ़ान समेटे बैठे हैं और ऊपर से बिल्कुल शांत दिखते हैं। हर चेहरे की अलग कहानी है पर फिर भी उस पर मुस्कान, आँखों में चमक, लेकिन भीतर कहीं गहराई में कितनी ही बातें दबी रहती हैं।कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बोलना चाहते हैं, पर शब्द गले तक आते-आते रुक जाते हैं। उन्हें डर होता है कि उनकी बातें शायद कोई समझ ही न पाए। या फिर कोई हँस दे, मज़ाक बना दे। इस डर ने ही कितने दिलों को पत्थर बना दिया है। कितनी ही दफ़ा इंसान अपने सबसे गहरे दर्द को भी ऐसे छुपा लेता है जैसे वो कोई गुनाह हो। मैं सोचता हूँ, कितनी ही मोहब्बतें होंगी जो अधूरी रह गईं, कितने रिश्ते ऐसे होंगे जिनमें बात करने की जगह बस चुप्पी बची है। कोई है जो अपने ही घर में अनसुना रह गया है, कोई है जो भीड़ में गुम होकर भी अकेला महसूस करता है। कितने चेहरे होंगे जिनकी हँसी बस औपचारिक है, और कितनी आँखें होंगी जिनकी नमी कभी ज़ाहिर नहीं होती। ये सच है कि हर इंसान एक कहानी है, मगर बहुत कम कहानियाँ सुनी जाती हैं। हम सब भीतर ही भीतर बोझ उठाए रहते हैं, बिना ये जाने कि कोई ...