संदेश

जुलाई, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देसी नुस्खे

अगर आप  कुछ खाने पीने की चीज़ों में सुधार करते हो तो अपने शरीर को स्वस्थ बनाने में मदद हो सकती है  आप अपने डॉक्टर खुद बन सकते है, 1. नमक केवल सेन्धा प्रयोग करें।थायराइड, बी.पी.पेट ठीक होगा। 2. कुकर स्टील का ही काम में लें। एल्युमिनियम में मिले lead से होने वाले नुकसानों से बचेंगे 3.तेल कोई भी रिफाइंड न खाकर केवल तिल, सरसों, मूंगफली, नारियल प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं । 4. सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें। 5. देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं।अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता। 6. ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा। 7. ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।  8. भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा। 9. नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें। पोषक विटामिन, फाइबर मिलेंगें। 10. सुबह के खाने के साथ देशी गाय के दूध का बना ताजा दही लें, पेट ठीक रहेगा। 11...

रिश्ता

कभी सोचा है कि एक रिश्ता आखिर टूटता कैसे है? ना कोई बड़ी लड़ाई होती है, ना कोई गुस्से से भरी चिट्ठी, ना ही कोई आंसुओं वाला अलविदा। बस सब कुछ चुपचाप होता है.. जैसे धूप में रखी कोई चीज़ धीरे-धीरे रंग खो देती है, जैसे दीवार पर टंगी तस्वीर धीरे-धीरे धुंधली हो जाती है, वैसे ही एक रिश्ता भी अपनी चमक खोने लगता है बिना शोर के, बिना विद्रोह के। शुरुआत में सब अच्छा लगता है। हर गुड मॉर्निंग, हर कॉल, हर रील, हर बातसब खास लगती है। लेकिन फिर धीरे-धीरे—एक अदृश्य दीवार खड़ी होने लगती है... "उम्मीद" की दीवार। उम्मीद होती है कि सामने वाला भी उतना ही चाहे, उतनी ही फिक्र करे, उतना ही जताए। और जब वो हमारी कल्पनाओं के मुताबिक नहीं चलता, तब शुरू होता है "नाप-तौल" का खेल— "मैं ही हर बार गुड मॉर्निंग क्यों भेजूं?" "मैं ही क्यों कॉल करूं?" "मैंने रील भेजी, उसने देखी तक नहीं।" "मैंने उसकी तस्वीर पर दिल से लिखा, उसने कोई रिएक्शन तक नहीं दिया।" ये बातें छोटी लगती हैं, लेकिन असल में यही गांठें हैं। जो हर बार रिश्ते के धागे को थोड़ा और कमजोर कर देती हैं। हम...

स्वर्ग

हमारे घर के पास एक भाभी रहती हैं.  अपना घर बहुत सुंदर रखती हैं.  एक एक चीज करीने से जमी है. गार्डन भी बेमिसाल है.  हर फूल,  धुला-खिला है.  मगर उनके ख़ुद के चेहरे पर मुर्दनगी छायी रहती है. पथरायी सूरत, कर्कश वाणी, लहजे में चिडचिडाहट. उनके हृदय में दूसरों से कुढ़न और प्रतिशोध की भावनाएं निरंतर चलती रहती हैं. इसी वज़ह से वह अस्वस्थ भी हैं.  वह अमीर हैं. उनके चारों तरफ स्वर्ग है मगर मन से वह नर्क में रहती हैं. इसी तरह मैं अपने कुछ पुरुष मित्रों को देखता हूँ पैसे से अमीर हैं, मगर शरीर थुल थुल है. खाने पीने पर सौ पाबंदियाँ हैं, चलने फिरने में सांस फूलती है. चेहरे पर तनाव और मन में अशांति है.   कीमती गाड़ी, महंगा फर्नीचर.  सब संसाधन उपलब्ध हैं मगर  शरीर और मन से वह नर्क में हैं. भारत में पचास उम्र के ऊपर, ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो शरीर और मन दोनों से स्वस्थ हों. स्वर्ग निर्माण के चक्कर में ज्यादातर लोग अपना जीवन, नर्क बना चुके होते हैं. फिर जिस स्वर्ग निर्माण में वह जुटे हैं उसका दायरा भी सीमित है, वह उनके घर से बढ़कर पड़ोसी के घर तक नहीं जाता. इ...

गाली

गाली एक ऐसा शब्द है जो हमारे सामाजिक व्यवहार, मानसिक स्थिति और सांस्कृतिक सोच का गहरा प्रतिबिंब है। यह सिर्फ अशोभनीय भाषा नहीं होती, बल्कि यह एक मानसिकता को दर्शाती है — एक ऐसी मानसिकता जो क्रोधित होकर शब्दों की मर्यादा तोड़ देती है, तर्क और संवेदनशीलता को ताक पर रख देती है, और व्यक्ति की आंतरिक असहायता को उजागर करती है। यह दुखद और चिंतनशील बात है कि अधिकतर गालियाँ स्त्रियों को आधार बनाकर बनाई गई हैं। माँ, बहन, बेटी जैसे पवित्र और कोमल रिश्तों को अपमान का माध्यम बना देना इस बात का प्रमाण है कि समाज में स्त्री को अब भी स्वतंत्र और समान व्यक्ति नहीं माना गया है। गालियों में स्त्री का उपयोग केवल इसलिए होता है क्योंकि समाज ने पुरुष की इज्जत को स्त्री के शरीर से जोड़कर देखा है। जब कोई किसी पुरुष को नीचा दिखाना चाहता है, तो वह उसकी बहन या माँ पर गंदे शब्दों का प्रयोग करता है। गाली देने वाला जानता है कि सामने वाले की भावनाओं को चोट पहुँचाने का सबसे आसान तरीका है — उसके स्त्री संबंधों पर हमला करना। यह सोच स्त्री के अस्तित्व को केवल एक वस्तु, एक माध्यम और एक सम्मान के प्रतीक से ज़्यादा कुछ नहीं...