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मिट्टी

जीवन में चाहे कैसी भी कठिन और निराशाजनक परिस्थितियां क्यों न हों,  हर सुबह उठकर जब पैर ज़मीन पर रखें तो शुक्रिया करें उस ईश्वर का कि आपके जीवन में फिर एक नई रौशनी से भरा सवेरा आया है.  उस क्षण ज़मीन को छूकर माथे से अवश्य लगाना चाहिए कि हमारे पैरों में उस जमीन का अहसास अभी तक जिंदा है । वरना किसी ऐसी ही एक साधारण सी सुबह वह अहसास भी होगा जब पैरों तले कोई ज़मीन नहीं होगी और हम कहीं दूर से बस देख रहे होंगें अपनी इस काया को इसी ज़मीन की मिट्टी में मिलते हुए. क्योंकि यही वह शास्वत् सत्य है जिसे जानते सब हैं,  सोचता कोई नहीं लेकिन एक दिन रूबरू सभी को होना पड़ता है. उस पल के विषय में जब कभी भीतर उतर कर सोचते हैं तो लगता है कि यह जीवन केवल एक भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं. और देखा जाए तो हम उसी मिट्टी से बने मिट्टी में मिलने के लिए ही जन्म लेते हैं.  फिर ये व्यर्थ के लोभ-शोक न जाने काहे इतने सिर पर चढ़कर बोलते हैं?  तो रोज़ सुबह उठकर यदि आपने ज़मीन पर पैर रखने का वो अहसास अपने भीतर उतार लिया तो यकीनन आप सदा ज़मीन से जुड़ कर रहेंगें और एक दिन ज़मीन की मिट्टी में मिलने का ...

सफलता- असफलता

असफलता से परिचय कराएं.         दिक्कत क्या है जानते हैं? दिक्कत ये है कि फेलियर को, असफलता को हमने भूत बनाकर रखा हुआ है.उसको हम ट्रीट ही ऐसा करते हैं कि अगर हम असफल हो गए तो वो हमारी ज़िंदगी का "दी एंड" वाला प्वाइंट हो जाता है.उसको हम "डेड एंड" घोषित कर देते हैं और यही नहीं इसी बात को हम अपने बच्चों पर भी डाउनलोड करते हैं.         एग्जाम हो रहा है तो फर्स्ट ही आना है.दौड़ में भाग ले रहे हो तो विनर ही बनना है.ये क्यों भूलते हो कि उस दौड़ में कोई रनर अप भी होगा और कोई ऐसा भी होगा जो सबसे लास्ट आएगा और लास्ट आने वाला भी एक इंसान है और उसके अंदर भी भावनाएं है.         हो सकता है, वो बहुत अच्छा न हो, वो बहुत खराब हो, तो क्या? हो सकता है कोई पढ़ाई में  अच्छा न हो, तो क्या? और ये भी हो सकता है कि वो पढ़ाई में अच्छा न होकर किसी और चीज में अच्छा हो.        मान लीजिए, वो किसी में भी अच्छा नही है, औसत है, तो भी क्या? क्या औसत लोग नही होते? क्या फेल होने वाले लोग नही होते?          सबसे पहल...