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आईना

तजुर्बा. सच कहूँ तो क़रीब आधी ज़िंदगी लगी मुझे तमाम बातें समझने में, और जब लोग मुझे बदलने को कहते हैं तो लगता है कि कितनी मुश्किल से तो असल दुनिया को समझा हूँ, तो अब काहे बदलना.. बहुत सारी बातों में से कुछ बातें साझा कर रहा हूँ, जो मैंने सीखीं, और समझीं अपनी आज तक की ज़िंदगी में.. ●धर्म अफ़ीम की तरह है (कार्ल मार्क्स) ●धर्म का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा राजनीति में होता है ●अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता, कुछ और होता है ●मीडिया, आज सिर्फ़ आपका ब्रेनवाश करने का काम करता है ●न्यूज़-चैनल्स न्यूज़ बनाते हैं, जिसका फ़ायदा किसे होता है हम जानते हैं, बस मानते नहीं और न ही कहना चाहते हैं ●सरकारें हमें धीरे-धीरे दबाती हैं और हमें आदत हो जाती है सब सहते जाने की, क्यूँकि हम डरते हैं आवाज़ उठाने से ●ज़्यादातर लोग सिर्फ़ इसलिये अन्याय का साथ देते हैं क्यूँकि ऐसा करने वाले ज़्यादा ताक़तवर होते हैं, और या तो लोग उनसे डरते हैं, या उनसे कोई काम करवाना चाहते हैं ●दिमाग़ सबसे बड़ा हथियार है, बस तरीक़ा पता होना चाहिए ●प्यार सिर्फ़ एक बार हो ज़रूरी नहीं, बल्कि ये थोड़ा पेचीदा मामला है ●प्यार सच्चा या झूठा नहीं होता, ये बस होता ...

श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि_उन्हें_जिन्हें_हमने_खो_दिया. एक सहानुभूति हम सभी के लिए जिन्होंने अपने किसी न किसी दोस्त, रिश्तेदार, क़रीबी या पहचान वाले को असमय ही खो दिया COVID के कारण. हम कुछ चीज़ें बदल नहीं सकते, और न ही होने से रोक सकते हैं, बस प्रयास कर सकते हैं कि नुकसान कम से कम हो. प्रकृति कभी-कभी बहुत क्रूर हो जाती है, और शायद इसलिए भी कि इंसान संतुलन को बिगाड़ने लगा है.  दुनिया की कुछेक प्रतिशत लालची उद्यमी, व्यवसायियों, और सरकारों की करनी प्रकृति को मजबूर कर देती है संतुलन बनाए रखने और इंसान को ये एहसास कराने को भी कि वो इस ब्रह्मांड का कण भर भी नहीं है, लेकिन अधिकांशतः ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है उस आबादी को जिसका कोई कसूर भी नहीं. वो लोग जो बस अपनी दिनचर्या, दोस्तों और परिवार के साथ ज़िंदगी को जी रहे होते हैं, सरकार और प्रकृति के बनाए नियमों का पालन करते हुए. सबसे पहले यही लोग परेशानी और मुसीबत झेलते हैं, चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो, सूखा हो, महामारी हो, या कोई युद्ध. ज़िंदगी भर नियमों और क़ायदों को ढोते रहने का बावजूद भी यही सबसे पहले शिकार बनते हैं.  बस एक श्रद्धांजलि उन सभी को, जिन्हें हमने खो द...