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नवंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ओम बन्ना

ओम बन्ना, राजस्थान के मारवाड़ इलाके में कम ही लोग हैं जो इस नाम से परिचित न हों। ओम बन्ना उर्फ ओम सिंह राठौड़। लोग उन्हें उनकी बुलेट मोटरसाइकिल की वजह से जानते हैं और वो भी मौत के बाद।ये बात जितनी हैरतअंगेज है उतनी ही सच भी। पाली से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक मोड़ है, जहांपर लगातार दुर्घटनाएं होती थीं।पिता हमेशा नसीहत देकर अपने जवान बेटे को भेजते थे और पत्नी शुभकामनाएं देकर। क्योंकि यह मोड़ उनके रास्ते का हिस्सा था और हर रोज उन्हीं यहीं से अपनी बाइक से आना होता था। उनकी पसंदीदा बुलेट। जो उनकी दोस्त भी थी और हमसफर भी।ओम बन्ना को खुद से ज्यादा भरोसा अपनी बुलेट पर था।1988 में हर रोज की तरह अपना काम खत्मकर देर शाम ओम बन्ना पाली से अपने गांव चोटिला की ओर लौट रहे थे।इस दौरान उन्हें सड़क पर कोई आकृति नजर आई और उन्होंने उसे बचाने के लिए अपनी बाइक घुमा ली। बाइक सीधी एक ट्रक में जा घुसी, भिड़ंत इतनी जबरदस्त थी कि मौके पर ही उनकी मौत हो गई।दुर्घटनाएं इस जगह पर आम थी और अकसर लोगों की मौत भी हो जाती थी। कुछ लोगों ने तो इस जगह को शापित तक करार दे दिया था। पुलिस यहां से उनका शव और बाइक थाने ले गई।परि...

अच्छाई

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीसभरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामानबेचा करता था,एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोरसे भूख भी लग रही थी.उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा,उससे खाना मांग लेगा..पहला दरवाजा खटखटाते ही एकलड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वहघबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलासमाँगा..लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वहएक.. बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया..कितने पैसे दूं? लड़के ने पूछा.पैसे किस बात के? लड़की ने जवाव में कहा.माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी परदया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए.तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ. जैसेही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवलशारीरिक तौर पर शक्ति मिलचुकी थी , बल्कि उसका भगवान् औरआदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था..सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप सेबीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसेशहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया..विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीजदेखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसनेलड़की के कस्बे का नाम सुना,उसकी आँखों में चमक आ गयी...

स्त्री मनोविज्ञान का समाजशास्त्रीय विश्लेषण

भारतीय समाज में अब तक पुरुषों की ऐसी पारंपरिक छवि बसी हुई थी, जिसमें पुरुषों के रौबदार, रफ-टफ, दबंग और गंभीर व्यक्तित्व की सराहना की जाती थी। पुराने समय की स्त्रियां ऐसे पुरुषोचित्त गुणों से परिपूर्ण पुरुषों के व्यक्तित्व के प्रतिआकर्षित होती थीं। लेकिन आज महानगरों का मध्यवर्गीय समाज बहुत तेजी से बदल रहा है। युवा पीढी की लडकियां पुरुषों की इस पारंपरिक छवि से अलग हटकर मेट्रोसेक्सुअल पुरुषों को ज्यादा पसंद करती हैं, जिसका अर्थ महानगरों में रहने वाले ऐसे पुरुषों से है, जिनके पास खर्च करने के लिए बहुत सारा धन होता है और जो अपने व्यक्तित्व को निखारने और संवारने के प्रति अतिशय जागरूक होते हैं।इसके लिए वे जिम, हेल्थ क्लब, पार्लर जाना, स्टाइलिश ब्रैंडेड आउटिफट्स पहनना जरूरी समझते हैं और अपने बाहरी और आंतरिक व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने में विश्वास रखते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे पुरुष भारतीय पुरुष की पारंपरिक छवि को सिरेसे खारिज करते हुए यूरोपीय देशों की पुरुषों की तरह कुकिंग, घर की सफाई और बच्चोंकी नैपी बदलने जैसे काम करने का भी भरपूर लुत्फ उठाते हैं।स्पोर्टस, म्यूजिक और डांस में रुचि में रखने वाल...

पुलिस की छवि

चित्र
पुलिस और समाज का एक अटूट रिश्ता है| हर नागरिक को कहीं ना कहीं पुलिस की ज़रूरत पड़ती हॆ, हमारे संविधान में भी पुलिस को एक महत्वपूर्ण दर्ज़ा दिया गया है| पुलिस का काम है समाज मे शांति बनाए रखना और अगर कोई इस शांति को नुकसान करता है तो उसे पकड़कर क़ानून के हवाले करना | अगर आदर्श रूप से देखें तो पुलिस का काम बहुत ही नेक काम है| पिछले कुछ समय में पुलिस की छवि को बहुत नुकसान पहुचा है | जैसा की हर जगह होता है, पुलिस में भी कुछ असामाजिक लोग हैं जिनके कारण पूरा पुलिस समाज बदनाम हो रहा है | दूसरा पुलिस का काम कुछ ऐसा है के वो किसी ना किसी की नज़र में तो बुरे बन ही जाते हैं | अगर दो लोग आपस में लड़ रहे हैं और पुलिस उनको शांत करवाने जाती है तो सीधी सी बात है दोनो में से एक तो नाराज़ होगा ही | हो सकता है दोनों को ही पुलिस की बात बुरी लगे |और बस यहीं से शुरू होती है पुलिस की छवि खराब होनी | एक और कारण है पुलिस की खराब छवि का; राजनैतिक दबाव, जैसे ही कोई ईमानदार पुलिस वाला कुछ करना शुरू करता है उसके उपर राजनैतिक दवाब बनना शुरू हो जाता है| चाहते हुए भी काम नहीं कर पाते और नाम बदनाम होता है पुलिस का | ...

सोच के बारे में

आप सब ने नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे, बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें बहुत सही और प्रभावशाली मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे वे बातें दिमाग से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही हो जाता है।इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हमअपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानीसे पाया जा सकता है।हममहसूस करते हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इ...

पतंग

बाप पतंग उड़ा रहा था बेटा ध्यान से देख रहा थाथोड़ी देर बाद बेटा बोला पापा ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है इसे तोड़ दो,बाप ने धागा तोड़ दियापतंग थोडा सा और ऊपर गई और उसके बाद निचे आ गई,तब बाप ने बेटे को समझाया,बेटा जिंदगी में हम जिस उचाई पर है,हमें अक्सर लगता है ,की कई चीजे हमें और ऊपर जाने से रोक रही है,जैसेघर,परिवार,अनुशासन,दोस्ती,और हम उनसे आजाद होना चाहते है,मगर यही चीज होती हैजो हमें उस उचाई पर बना के रखती है.उन चीजो के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे,मगर बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो पतंग का हुआ.इसलिए जिंदगी में कभी भीअनुशासन का,घर का ,परिवार का,दोस्तों का,रिश्ता कभी मत तोड़ना.

Oh My God: भगवान की सही व्याख्या

भगवान को देखा है? कैसा है वह? कहाँ रहता है ? हिन्दू है या मुसलमान? आदमी है या औरत? शक्ल कैसी है? ये और इन जैसे अनेक प्रश्न मनुष्य को आदि काल से मथते आए हैं। इसी मंथन से वेद, उपनिषद, वेदांग, गीता, बाइबल, अवेस्ता, क़ुरान जैसे ग्रंथ निकले हैं। इन्हें किसने रचा कोई नहीं जानता पर इनमें मानव जाति  के सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान का समावेश है। यह ज्ञान है अस्तित्व का, मनुष्य के होने के कारण का, उसकी कठनाइयों का और उसकी जिम्मेदारियों का। यह ज्ञान है मनुष्य के विकास का, उन्नयन का। पशुत्व से मानवत्व के विकास की कुंजी का। यह ज्ञान है आस्था का, भरोसे का और इसी ज्ञान से जब जब भरोसा टूटता है तब तब उसे फिर से स्थापित करने के लिए किसी मुहम्मद, ईसा, कृष्ण या बुद्ध को आना पड़ता है और इन ग्रन्थों की शिक्षाओं को फिर से नए संदर्भों में स्थापित करना पड़ता है। दुनियाँ के सबसे पुराने हिन्दू धर्म में यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखती है। इस धर्म में निरंतार नए तत्वों का समावेश होता रहा है। यह सबको अपने भीतर ले कर चलने वाला सही मायने में लोकतांत्रिकता का प्रतीक है। इसमें सनातन से लेकर पुरातन, नास्तिक, तांत्रिक, अघोर, शैव...