संदेश

अक्टूबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

.. रिश्ते कमाता हूँ "...

" साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता.... रिश्ते कमाता हूँ ".....! आज सुबह सुबह अपने एक फेसबुक फ्रेंड की एक पोस्ट पढ़ी... थोड़ी लम्बी है, लेकिन है बहुत काम की... उम्मीद करता हूँ आप पूरी पढेंगे और इसके भाव को अपने जीवन में स्थान देंगे |  तो पोस्ट इस तरह से है :- बहुत पहले मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट  दफ्तर में दलालों का बोलबाला था और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे। मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे। हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया। पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी। हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा। मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज प...

...अलफ़ाज...

 kumar shikstgi righter...       1....    .अहसास हैं.. के बेचैन हैं जाहिर होने को.. । ..अलफ़ाज हैं के कमब्ख़्त हङताल किये बैठे हैं.. ।। ..इस मौसम की पहली सर्द हवाओ का.. मेरी उदास मुस्कुराहटें इस्तकबाल कर रही हैं.. चलो ये मौसम भी हमे रास आया वरना तो सो चा करते थे.. तेरे साथ सारे मौसम भी चले गये हैं.. तन्हाईयों का लिबास अब जगह जगह से फटने लगा है.. उदास मुस्कुराहटों के पैबन्द काम आ रहे हैं बहुत.. आह.. इश्क आज छुट्टी पर है कमब्ख़्त.. और ज़िन्दगी किसी मासूम बच्चे की तरह आईने में खुद को निहार रही है.. ।। ..कुमार शिकस्तगी.. ।।  2...    शायद आपने वो मंज़र नहीं देखा । ग़मों में जीने वालों का समंदर नहीं देखा ।। आप मुसाफ़िर तो हैं अपनी मंजिल के । पर बिना मंजिल के मुसाफ़िर को नहीं देखा ।। रिश्तों के टूटने का दुःख आप क्या जानो । आपने शायद रिश्तों के बंधन को ही नहीं देखा ।। महल तो खड़े कर लिए आपने शीशे के । पर शीशे की चमक में खुद को नहीं देखा ।। ढूंढने निकले थे दीपक की रोशनी को । दुनियाँ छान ली पर खुद के अन्दर नहीं देखा ।। हो सकता है गलत लिखती ह...

फितरत

चित्र
1...   कहते हैं कि इंसान  की फ़ितरत उसके कर्मों से पता चल जाती है। उसके चेहरे से, उसकी बातों से, उसकी हरकतों से, उसके चाल-चलन से.....  उधारण के लिए,  एक लालची इंसान हमेशा हर कार्य के पीछे अपना फायदा देखेगा।  एक कामचोर इंसान कार्य करने से पहले उसकी अवधि नापेगा।  एक कपटी इंसान हर कार्य को आरंभ करने से पहले उसके दोनों पहलू को देखेगा।  एक ईमानदार इंसान खाली कार्य के उद्देश्य को देखेगा।  एक मेहनती इंसान कार्य को ख़त्म करने का सोचेगा।  इंसान को अपनी फ़ितरत समय के हिसाब से, परिस्थितियों के हिसाब से और जमाने के हिसाब से बदलते रहना चाहिए। नहीं तो दूसरे लोग आपकी फ़ितरत का फायदा उठा कर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं।  2.....    हम जीते हैं, झूठे ख्वाबों के सहारे जिन्दगी, न कोई रास्ता न कोई मंजिल भटकना है, अनजान राहों पर, बसाना चाहते हैं, इक नयी दुनिया, अपने वजूद को मिटाकर , नफरत , धोका, फरेब, घुटन सी होती है, दुनिया को देखकर, न वफ़ा , न सच्चाई, हर तरफ, नफरत, नफरत, सिर्फ नफरत, हैवानियत के आलम में, पहचान खोती, इंसानियत, किश्तो...

स्वच्छ भारत अभियान -

चित्र
स्वच्छ भारत अभियान --- जयसिँह शेखावत, गाँव- बबाई, तहसिल- खेतङी, जिला- झुँझुनूँ ( राजस्थान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्तूबर को देशव्यापी स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की. शुभ दिन की प्रतीक्षा के पहले ही मंत्रियों तथा आला अफसरों ने झाड़ू थाम ली और कैमरे के आगे अपने-अपने अश्वमेधी घोड़े छोड़ने में जुट गए हैं. यह शक़ बेबुनियाद नहीं कि इस बार भी यह अनुष्ठान दिखावा भर ही न रह जाए, अधिक से अधिक एक सालाना दिखावटी रस्म अदायगी. बहरहाल यह ‘पर्व’ हमें भारतीय जीवन में स्वच्छता के बारे में गंभीरता से सोचने का एक नायाब मौका दे रहा है जिसका सदुपयोग किया जाना चाहिए. अक्सर यह कहा जाता है कि हम हिंदुस्तानी अपने शरीर की सफाई का तो ध्यान रखते हैं, अपने घरों को भी जहां तक हो सके साफ़-सुथरा रखते हैं पर सार्वजनिक जीवन में साझे के स्थानों को दूसरे की ज़िम्मेदारी मान कर चलते हैं. जहां जी चाहे थूकते हैं, लघुशंका से निवृत्त हो लेते हैं. ख़ाली प्लास्टिक की बोतल, थर्मोकोल की पत्तल हो या नमकीन मिठाई या गुटका मसाला के चमकीले पैकेट-पन्नियां इन्हें प्यार बांटते चलो वाली अदा में यत्र-तत्र-सर्वत्र ...

सामाजिक परिवर्तन और विकास

परिवर्तन प्रकृति का नियम है । हर एक चीज परिवर्तित होती रहती है, जैसे समय, समय की स्थिति, समाज, ऋतुएँ, जीव एवं उनका व्यवहार, सोच एवं सिद्धांत, जीवित और निर्जीव हरएक वस्तु आदि आदि । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या परिवर्तन ही विकास है या विकास की तरफ उठता हुआ एक कदम है । अपने चारो तरफ अगर ध्यान से अन्वेषण किया जाये तो हम पायेंगे कि हर एक छण कुछ न कुछ नया हो रहा है । क्या नवीनता और परिवर्तन एक ही चीज है । यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो हमेशा से हरएक के मन और मस्तिष्क को झझोरते रहते हैं । मनुष्य इसका उत्तर जानते हुए भी अनजान बना रहता है या फिर अनजान बने रहने में ही अपनी भलाई समझता है । मैं यहाँ पर सामाजिक परिवर्तन और नयी सोच के बारे में अपने कुछ विचार व्यक्त कर रहा हूँ । आदिकाल से मनुष्य को दुसरे के बारे में सोचना और उसकी नक़ल करना अच्छा लगता है । प्रतिस्पर्धा करना जैसे मनुष्यों की आदत बन गयी है, और मनुष्यों की बात ही अलग पशु पक्षी भी एक दुसरे की नक़ल और एक दुसरे से स्पर्धा करते हैं । एक जीव दुसरे जीव से अपने आप को अलग और बेहतर साबित करने की कोशिश हमेशा करता रहता है अर्थात विभिन्न समाज म...