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आज फिर ...

आज' फिर उठाई थी कलम  जज़बातों के साथ  ढेरों थी बातें  फिर भी जकड़े थे हाथ  कोशिश तो बहुत की  पर कलम बढ़ न पाई  कुछ ही शब्द मिले  फिर फूट पढ़ी रुलाई  वजह पूछो तो  पता नहीं  बस उलझा है मन  बेवजह कहीं  क्या कुछ खोया मैंने?  या आई किसी की याद  या फिर  कुछ न मिलने के दर्द में  कट गए दिन रात  सुर्ख है दिल का आलम  इन जज़बातों के साथ  ढेरों हैं बातें  फिर भी जकड़े हैं हाथ ....  शायद वोह 'समय' आ ही गया  की बीत जाऊँगा मैं ए मेरी हम्नफ्ज़  जो बस कभी तुमसे वादा किया था  अब लिखने की कोई तम्मना भी नहीं  क्योकि आपकी ख्वाइशों के सजदे में  मेरे हाथ बंधे कर रह गए .....  कुछ आरजूएं, कुछ ख़त, कुछ नगमे ,एक राज़ बन के रह गए  किसी ख़ुशी के लिए हम बस एक साज़ बनके रह गए  समय चलता गया 'हमारे' निशाँ समय की रेत पर मिटते चले गए ...

yesh chopra ji.....

बॉलीवुड के जानेमाने फिल्म निर्माता यश चोपड़ा का रविवार को निधन हो गया। मुंबई के लीलावती अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। यश चोपड़ा के निधन से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है।  27 सितंबर 1932 को लाहौर में जन्मे यश चोपड़ा की पहचान किंग ऑफ रोमास की रही है। कई सफल फिल्मों को डायरेक्ट करने वाले यश चोपड़ा ने कुछ दिन पहले ही शाहरुख खान स्टारर [जब तक है जान] के बाद रिटायर होने की घोषणा की थी।  यश चोपड़ा ने कुछ दिन पहले अपना 80वा जन्म दिन मनाया था। इस अवसर पर उन्होंने अपनी रिटायरमेंट की घोषणा कर सभी को हैरान कर दिया था। उन्होंने कहा था कि [जब तक है जान] बतौर डायरेक्टर उनकी आखिरी फिल्म होगी। इस फिल्म के रिलीज होने के पहले ही वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए। आई.एस चोपड़ा और अपने भाई बी.आर चोपड़ा के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर शुरुआत करने वाले यश चोपड़ा ने भारतीय सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं। 1973 में यश राज फिल्म्स नाम से अपनी प्रॉडक्शन कंपनी खोलने के बाद उन्होंने इंडस्ट्री को न सिर्फ कई हिट फिल्में दीं, बल्कि कई स्टार भी दिए। 1975 में आई उनकी फिल्म दीव...

ma ki mahima.

दुनिया ने आज भले ही चाहे कितनी तरक्की कर ली हो, पर हम लोगो द्वारा स्थापित दिखावे की तैयार की गई इस संस्कृति से हमारे अपने जीवन और समाज में अशांति और विषमता आज लगातार बढती जा रही है। जिसने कई बुनियादी रिश्तो के साथ ही आज समाज में मॉ और बच्चे के रिश्तो की बुनियाद को हिला कर रख दिया है। आज भागमभाग वाले इस जमाने में अधिकतर मॉओ को अपने बच्चो के पास रहने का वक्त ही नही है। आज भयंकर मंहगाई के इस दौर में रोजमर्रा की जरूरतो को पूरा करने में परिवार के दोनो पहिये कमाई करने में लगे है। नतीजन बच्चे को आया पाल रही है या फिर परिवार का दूसरा कोई सदस्य। ऐसी स्थिति में बच्चे को मॉ का प्यार दुलार नही मिल पा रहा है, वो गोद नही मिल पा रही है जिस में लेट कर वो घंटो घंटो गहरी नींद सोता है, वो कंधा नही मिल पा रहा है जिस से लग कर उसे मॉ के दिल की घडकन सुनाई देती है, वो छाती नही मिल पा रही है जिस से मुॅह लगा कर वो अपना पेट भरता है। बच्चे के जीवन के शुरूआती सालो में ही नैतिक कार्य की जडे उस में विकसित होती है अगर इस समयावधि में बच्चे की सही देखभाल न की जाये तो आगे चलकर उस के षारीरिक और मानसिक विकास...

भावना की राजनीति

यह तो शुरू से ही पता है कि भावना बुद्धि से ज्यादा मजबूत होती है। पर मैं समझता था कि लोकतंत्र, या कोई भी तंत्र, भावना के साथ-साथ बुद्धि से भी चलता है। व्यक्तिगत जीवन में भले ही भावना बुद्धि पर विजयी हो जाती हो, पर सामाजिक जीवन में बुद्धि का स्थान भावना से ऊंचा है। कारण यह है कि भावनाओं के द्वंद्व को सुलझाने का कोई वस्तुपरक तरीका नहीं है, लेकिन बुद्धि के क्षेत्र में तर्क और बहस के द्वारा किसी सुसंगत निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है। कानून में भी बुद्धि को ही प्राथमिकता दी जाती है। अगर कोई अपनी प्रेमिका की बेवफाई से आहत हो कर उसकी हत्या कर देता है, तो अदालत न्याय करते समय उसकी भावनाओं पर विचार नहीं करेगी, यह देखेगी कि उसका आचरण बुद्धिसंगत था या नहीं।  देश में हम काफी लंबे समय से भावना की एक ऐसी राजनीति देख रहे हैं जिसका बुद्धि से कोई संबंध नहीं है। भावना के इसी तीव्र उभार से एक चार सौ साल पुरानी जीर्ण-शीर्ण मस्जिद गिरा दी गई। इस तरह समाज के एक वर्ग की भावना तो तृप्त हो गई, पर इससे दूसरे वर्ग की जो भावनाएं आहत हुईं, उन पर लगाने के लिए कोई मरहम अभी तक खोजा नहीं जा सका है। मामला सोलह साल स...

महंगाई पर राजनीति

डीजल के दाम बढ़ने और रसोई गैस के सिलेंडरों पर कोटा लागू होने के साथ ही आम आदमी के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। महंगाई का पहले से ही कोई ठिकाना नहीं है। कई बार तो एक ही दिन में चीजों के दाम बढ़ जा रहे हैं। आम जनता में यह धारणा सी बन चली है कि बाजार पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। बल्कि अब तो लोगों को ऐसा लगने लगा है जैसे सरकार बाजार पर कोई नियंत्रण रखना भी नहीं चाहती है। पेट्रोल के मूल्यों में पिछले एक साल में ही कई बार बढ़ोतरी की जा चुकी है। डीजल के दाम बढ़ाने से अकसर सरकार बचती रही है , लेकिन इस बार डीजल के दाम ही बढ़ाए गए हैं। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि पेट्रोल के मामले में सरकार किसी प्रकार की कोई राहत देने जा रही है। देर-सबेर पेट्रोल के दाम भी फिर बढ़ेंगे ही। राहत यहां किसी भी कीमत पर आम आदमी को मिलने वाली नहीं है। रसोई गैस पर कोटा थोपे जाने से तो लोग परेशान हैं ही , उससे अधिक रोष उनका गैस एजेंसियों की कार्यप्रणाली और उपभोक्ताओं के प्रति उनके रवैये से है। इससे भी अधिक हताशा जनता को न केवल पेट्रोलियम पदार्थो , बल्कि समग्रता में महंगाई के मसले प...