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जियो तो ऐसे जियो

( सपना पींचा जी ने लिखा है ) मैं जितने साल जी चुकी हूँ*, *उससे अब कम साल मुझे जीना है* यह समझ आने के बाद मुझमें यह परिवर्तन आया है: -किसी प्रियजन की विदाई से,*अब मैं रोना छोड़ चुकी हूँ क्योंकि आज नहीं तो कल मेरी बारी है।* -उसी प्रकार, अगर मेरी विदाई अचानक हो जाती है, तो मेरे बाद लोगों का क्या होगा, यह सोचना भी छोड़ दिया है क्योंकि मेरे जाने के बाद कोई भूखा नहीं रहेगा। -सामने वाले व्यक्ति के पैसे, पावर और पोजीशन से अब मैं डरती नहीं हूँ। -खुद के लिए सबसे अधिक समय निकालती हूँ। मान लिया है कि दुनिया मेरे कंधों पर टिकी नहीं है। मेरे बिना कुछ रुकने वाला नहीं है। -छोटे व्यापारियों और फेरीवालों के साथ मोल-भाव करना बंद कर दिया है। कभी-कभी जानती हूँ कि मैं ठगी जा रही हूँ, फिर भी हँसते-मुस्कुराते चली जाती हूँ। -कबाड़ उठाने वालों को फटी या खाली तेल की डिब्बी वैसे ही दे देता हूँ, पच्चीस-पचास रुपये खर्च करती हूँ, जब उनके चेहरे पर लाखों मिलने की खुशी देखती हूँ तो खुश हो जाती हूँ। -सड़क पर व्यापार करने वालों से कभी-कभी बेकार की चीज़ भी खरीद लेती हूँ। -बुजुर्गों और बच्चों की एक ही बात कितनी बार सुन लेत...