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ऐसे जिये

जरूर पढ़ें... जीवन को समझने का एक अलग नजरिया  (काँच की बरनी और दो कप चाय) जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” सबकुछ समझा देती हैं दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं … उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की   बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ?  आवाज आई - हा  फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये  धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई   है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में र...

ऐसे जिये

सामान्य जीवन में मिलने वाले दुखों का एक महत्त्वपूर्ण प्रकार है- 'शिकायतों, आलोचनाओं से मिलने वाले दुःख'। सामान्यतः लोगों को कोई न कोई शिकायत रहती है, जो उनके दुःख का कारण बनती है। चाहे समय से हो, भाग्य से हो, सरकार से हो, समाज से हो, दूसरों से हो या अपनों से हो ...शिकायतें बहुत दुःख देती हैं। शिकायतों, आलोचनाओं से दुःख क्यों होता है? मनोवैज्ञानिक दृष्टिबिन्दु से देखें, तो किसी भी शिकायत की सबसे प्रमुख वजह है निर्भरता। निर्भरता उम्मीद की साथिन भी होती है और संतति भी। उम्मीद है कि खाना अच्छा मिलेगा, नहीं मिला तो शिकायत है। अगर बच्चे से उम्मीद है नब्बे प्रतिशत की और अस्सी प्रतिशत अंक आ गए, तो शिकायत है। लेकिन अगर उम्मीद ही होती सत्तर प्रतिशत की और अस्सी प्रतिशत आ जाते, तो कोई शिकायत नहीं जन्मती, अपितु ख़ुशी होती। उम्मीद ज़्यादा, तो शिकायत ज़्यादा। उम्मीद कम, तो शिकायत कम। उम्मीद है कि मित्र गाढ़े वक़्त में कुछ मदद करेगा; क्योंकि कभी उसकी मदद की थी-अब उसने मना कर दिया तो शिकायत है। अगर पहले से ही उम्मीद न होती कि मित्र कोई मदद करेगा, तो शिकायत नहीं होती। आश्चर्य नहीं कि पति-पत्नी एक दूस...

खुद को बदले

(नया साल,नई बात, उम्मीदों की) सिर्फ़ कैलेंडर बदल रहा है, एक तारीख़ बदल रही है, लेकिन आप ओर हम  तो वही हैं जो पहले थे, और हमारी परेशानियाँ भी वही हैं, और परिस्थितियाँ भी. ऐसा कई लोग कहते हैं कि नया साल आने से क्या ही बदलता है. ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि नया साल मतलब एक नई डायरी, एक नया चैप्टर और एक नई सुबह.  माना कि आपकी परिस्थितियाँ नहीं बदलतीं, लेकिन आप इसे एक बुकमार्क तो बना ही सकते हैं न.  नया साल और नई तारीख़ एक बहाना हो सकता है, कि आप कुछ नया सोचें, प्रण लें कुछ नया करने का या नए तरीक़े से करने का, एक नई सोच को जीने का, एक नए ख़्याल को परवाज़ देने का, और एक लड़ने के संकल्प का.  मानता हूँ कि एक तारीख़ भर बदल जाने से कुछ नहीं बदलता, लेकिन इसे एक मौके की तरह तो ले ही सकते हैं. दिल की सुनने का और अपने मन की करने का नियम तो बना ही सकते हैं. वो करने का मन बना सकते हैं जो करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते. कभी-कभी कुछ चीज़ों को नज़रिए के तराज़ू से तौल लेना चाहिए, ताक़ि याद रहे कि ज़िंदगी ऐसे तो हर लम्हे में है लेकिन जो हम भूल चले हैं उसे नए पन्ने से एक बार फ़िर शुरू करते हैं. हँ...