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रोना

रोने_वालों_को_तो_रोने_का_बहाना_चाहिये!😭😭 ◆आज वे पैदल जाते मज़दूरों पर रो रहे हैं! ◆कल को जिन के विवाह स्थगित होंगे उन पर रोयेंगे! ◆सरकार के कोरोना रोकने के प्रयासों (लॉक डाउन) पर! ◆यदि फैल गया तो लोगों की लाशों पर! ◆यदि लोग न मरे तो अर्थव्यवस्था पर! ◆अर्थव्यवस्था को संभाल लिया तो सेंसेक्स के गिरने पर! ◆सेंसेक्स उठ गया तो जीडीपी पर! ◆GDP growth सही आ गयी तो उस के caculation method पर! ◆उस से सन्तुष्ट कर दिया तो रुपये की गिरती कीमत पर! ◆रुपया चढ़ गया तो महंगाई पर! ◆महंगाई घट गई तो किसानों की दुर्दशा पर! ◆किसानों को सीधा लाभ दे दिया तो उसके बहुत कम होने पर! ◆सेना को हथियार मिले तो ग़रीब की थाली पर! ◆ग़रीबों को फ़ोकस में लिया तो सेना के घट रहे बजट पर! ◆कंधार में प्लेन हाइजेक हुआ तो सिसकते परिवारों पर! ◆आतंकवादी छोड़ दिये तो उनके छोड़े जाने पर! ◆आंतकी हमला हुआ तो हमले पर! ◆हमला होने से पहले ही आतंकवादी पकड़ लिये गये तो पकड़े गए 'निर्दोष' लोगों पर! ◆सब्जी मँहगी हुई तो गृहणियों के बजट पर! ◆सब्जी सस्ती हुई तो किसानों की दुर्दशा पर! ◆प्याज़ 100 रु हुआ तो थाली के ज़ायके पर! ◆प्याज़ 8 रुपये रह गया ...

16 मजदूर

16_ग़रीब_और_बस.. किसी ने लिखा कि पटरी पे सोए ही क्यूँ, कोई लिख रहा था कि पटरी से हटकर भी सो सकते थे, कोई लिखा कि पैदल क्यूँ जा रहे थे घर, और भी न जाने असंवेदनशील पोस्ट्स देखे सुबह से.. 16 ग़रीब मज़दूर, भूख-प्यास से लाचार, लॉकडाउन और सरकारी उपेक्षा के मारे, बस अपने घर ही जा रहे थे..थकान शायद इतनी रही हो कि पटरी पे ही सर टिकाकर सो गए ये सोचकर कि ट्रेन्स तो वैसे भी बंद ही हैं, और नींद, थकान, भूख और मजबूरी हो तो लॉजिक और कॉमन-सेंस तो मर ही चुका होता है.. दुःख होता है, गुस्सा आता है..अव्वल तो इस देश के हर ग़रीब और मजबूर पर कि इस दुनिया में जगह है भी क्या इनकी, सिर्फ़ यही कि बस खटते रहें और अमीरों को और अमीर करते रहें, सरकार का वोट-बैंक बने रहें, इससे ज़्यादा इस दुनिया में और ज़रूरत भी क्या है एक ग़रीब की..जब अर्थव्यवस्था गिरती है तो सबके पहले यही ग़रीब मरता है, जब नोटबंदी होती है तब भी यही पहले मरता है, जब बैंक अपना लोन वसूलता है तो इसी ग़रीब का घर बिकता है, जब कहीं गैस लीक होती है तो यही मरता है, जब लॉकडाउन घोषित होता है तो यही पिटता भी है, और भूखा भी यही मरता है.. वैसे भी मैं ईश्वर या अल्लाह के कंस...