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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक झटका

कोरोना ने एक झटके में घुटनों पर ला दिया समस्त मानव जाति को।  उड़े जा रहे थे ,कोई चाँद पर कब्जे की तैयारी कर रहा है तो कोई मंगल पर। कोई सूरज को छूने की कोशिश कर रहा है तो कोई अंतरिक्ष में आशियां ढूँढ रहा है ।  पड़ोसी देश एक दूसरे की जमीन को  हड़पने की तैयारी में  लगे है । Nuclear Power की दौड़ में विश्व को ध्वस्त करने की कोशिश में लगे हैं । कहीं धर्म के नाम पर नरसंहार चल रहा है तो कहीं जाति के नाम पर अत्याचार, मानव जाति विनाश की ओर बढ़ रही है । ईश्वर ने मानो एक संदेश दिया है -  "मैंने तो तुम लोगों को रहने के लिए इतनी खूबसूरत धरती दी थी । तुम लोगों ने इसे बर्बाद करके नर्क बना दिया । मेरे लिये तो आज भी सब एक छोटे से प्यारे से परिवार  की तरह हो। मुझे नहीं पता कि कहां किस देश की सीमा शुरू होती है और कहां खतम होती है  । ये सब तुम लोगों ने बनाया है । मुझे नहीं पता कि कौन किस धर्म व जाति का है । मैंने तो सिर्फ़ इन्सान बनाया था । क्यों एक दूसरे को मार रहे हो ? प्यार से नहीं रह सकते क्या ? संभल जाओ और सुधर जाओ । प्रकृति का सम्मान करो ।  वसुधैव कुटुंबकम की तर...

उड़ान

आज ये तस्वीर देखते ही साझा करने की इच्छा कर गई।  बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी और की नही होती। मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है।  जितने ऊपर अमूमन हवाई जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है ? तेरी दुनिया क्या है ? तेरी ऊंचाई क्या है ? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है। धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है। अब धरती से वह लगभग...

स्त्री

मैं स्त्री हूँ...सहती हूँ... तभी तो तुम कर पाते हो गर्व, अपने पुरुष होने पर.... मैं झुकती हूँ.....तभी तो ऊँचा उठ पाता है तुम्हारे अहंकार का आकाश.... मैं सिसकती हूँ...... तभी तो तुम मुझ पर कर पाते हो खुल कर अट्टहास.... व्यवस्थित हूँ मैं...... इसलिए तो तुम रहते हो अस्त व्यस्त....... मैं मर्यादित हूँ......... इसलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमाएं.... मै स्त्री हूँ ... हो सकती हूँ पुरुष भी... पर नहीं होती... रहती हूँ स्त्री इसलिए... ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरुष... मेरी ही नम्रता से पलता तुम्हारा पौरुष... मैं समर्पित हूँ.... इसलिए हूँ... अपेक्षित, तिरस्कृत... त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान, ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान... सुनो मैं नहीं व्यर्थ... मेरे बिना भी तुम्हारा नहीं कोई अर्थ.....!

कोरोना

।कुदरत ! एक करोना वायरस के आगे 150 करोड़ की आबादी वाला चीन अपने ही घर में बंदी बन गया है,सारे रास्ते वीरान हो गए हैं,चीन के राष्ट्रपति तक भूमिगत हो गए हैं। एक सूक्ष्म सा जंतु और दुनियाँ  को आँखे दिखाने वाला चीन एकदम शांत,भयभीत। केवल चीन ही क्यों? सारे विश्व को एक पल में शांत करने की ताकत कुदरत में है! हम जातपात,धर्म भेद,वर्ण भेद,प्रांत वाद के अहंकार से भरे हुए हैं। यह गर्व,यह घमंड करोना ने मात्र एक झटके में उतार दिया,बिना किसी भी प्रकार का भेद रखे सारे चीन को बंदिस्त करके रख दिया है, इस संसार का कोई भी जीव कुदरत के आगे बेबस है,लाचार है कुदरत ने शायद यही संदेश दिया है; प्यार से रहो,जियो और जीने दो! अन्यथा सुनामी है,करोना है,रीना है,टीना है;लेकिन इसके बावजूद अगर,   जीना है तो प्यार से इंसान को कभी भी अपने वक़्त पर, ताकत पर, हुकुमत पर, डीग्रीओ पर, माल-दौलत पर घमंड अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वक़्त तो उन नोटों का भी नहीं हुआ,जो कभी पूरा बाजार खरीदने की ताकत रखते थे!  ( ज़िन्दगी है साहब, छोड़कर चली जाएगी मेज़ पर होगी तस्वीर, कुर्सी खाली रह जाएगी )