वह सचमुच बिजली गिरा कर चली गई. जाना सभी को है, पर जब भी कोई इस तरह जाता है तो बेहद कष्टप्रद होता है. आज की सुबह श्रीदेवी के करोड़ों प्रशंसकों पर किसी ‘मनहूस शाम सी’ भारी पड़ी. सुबह तो आशा लेकर आती है, हम आशाओं के सहारे ही जीते हैं, पर नियति को भी तो उसका काम करना ही है, नियति निर्विकार है, इसलिए व्यक्ति के हाथ में आशाओं—निराशाओं से परे केवल संघर्ष का ही एक रास्ता शेष बचता है. यदि श्रीदेवी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ पढ़ा—लिखा न जाए या कोई ऐसा दर्शक भी हो जिसने उन्हें हिंदी फिल्मों में ही देखा हो तो कोई सोचेगा भी नहीं कि वह दक्षिण भारत के एक राज्य से ताल्लुक रखती हैं. अपनी बेहतरीन अदाकारी, मादकता और चुलबुले चेहरे से वह पूरे हिंदुस्तान के दिलो—दिमाग पर लंबे समय तक छाई रही. केवल हिंदी ही नहीं, कई भाषाओं में उन्होंने करीब तीन सौ फिल्मों में काम किया. भाषायी तौर जब हम सिनेमा पर नजर डालते हैं तो दक्षिण भारत और शेष भारत का जो विभाजन है, उसमें श्रीदेवी की रचनात्मक संसार किसी तरह का सवाल ही पैदा नहीं होने देता, जो अमूमन दक्षिण भारत के सिनेमा को केवल रोमांच और बाहुबल के न...