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फ़रवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अजब देश है साहब,

भारत के मंदिरों में जितना सोना पड़ा है उससे भारत के सभी ग्रामीण इलाकों में गरीबों के लिए पक्के घरों का इंतजाम हो सकता है, गरीब ग्रामीणों के लिए समुचित रोजगार और सम्मानित जीवन जीने की व्यवस्था हो सकती है. किसानों के लिए सस्ती खाद और सिचाई की व्यवस्था हो सकती है. सस्ते अस्पताल और स्कूलों की व्यवस्था हो सकती है. भूखे नंगे कचरा बीनने वाले बच्चों के लिए शिक्षा और भोजन, आवास की व्यवस्था हो सकती है, सस्ते ब्याज पर कर्ज देकर दंगा करने और चौराहों पर ताश खेलने व् दारू पीकर उत्पात मचाने वाले युवाओं को स्वरोजगार कराने की व्यवस्था हो सकती है. इसी प्रकार जितना चंदा मस्जिदें बनवाने के लिए एकत्र किया जाता है जिनका प्रयोग बाद में ए के 47 बंदूकें, ग्रेनेड और बारूद स्टोर करने में किया जाता है, यदि वही पैसा मुसलमान अपने बच्चों की तालीम( शिक्षा) पर खर्च करें तो वो आतंकी और जिहादी बनने की बजाय, होटलों पर प्लेटें धोने की बजाय, गैराजों में पंचर जोड़ने की बजाय, पतंग उड़ाने की बजाय, पढ़ लिख कर काबिल बन सकेंगे, अपने परिवार का न सिर्फ भरण पोषण करेंगे बल्कि अपना नाम अच्छे कामों के लिए दुनिया में रोशन...

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

मनुष्य के जीवन में पल-पल परिस्थितीयाँ बदलती रहती है। जीवन में सफलता-असफलता, हानि-लाभ, जय-पराजय के अवसर मौसम के समान है, कभी कुछ स्थिर नहीं रहता। जिस तरह ‘इंद्रधनुष के बनने के लिये बारिश और धूप दोनों की जरूरत होती है उसी तरह एक पूर्ण व्यक्ति बनने के लिए हमें भी जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से होकर गुजरना पड़ता है।‘ ।हमारे जीवन में  सुख भी है दुःख भी है, अच्छाई भी है बुराई भी है। जहाँ अच्छा वक्त हमें खुशी देता है, वहीं बुरा वक्त हमें मजबूत बनाता है। हम अपनी जिन्दगी की सभी घटनाओं पर नियंत्रण नही रख सकते, पर उनसे निपटने के लिये सकारात्मक सोच के साथ सही तरीका तो अपना ही सकते हैं। कई लोग अपनी पहली असफलता से इतना परेशान हो जाते हैं कि अपने लक्ष्य को ही छोङ देते हैं। कभी-कभी तो अवसाद में चले जाते हैं। अब्राहम लिंकन भी अपने जीवन में कई बार असफल हुए और अवसाद में भी गए, किन्तु उनके साहस और सहनशीलता के गुण ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सफलता दिलाई। अनेकों चुनाव हारने के बाद 52 वर्ष की उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपती चुने गए। दोस्तों, हर रात के बाद सुबह होती है। ...

चंद लम्हे

1..  मैं शब्दों में जिंदगी एक किताब हूँ। या यूँ कह लो एक जिवंत ख्वाब हूँ। एक अरसे से भी ज्यादा की खोज हूँ मैं। या यूँ कह लो कागज पर उभरे भाव हूँ। अनगिनत लम्हों का पिटारा हूँ मैं। या यूँ कह लो बस एक जवाब हूँ। बड़ा आसान है मुझ में समाना यूँ तो। या यूँ कह लो खुद में एक समाज हूँ। हाँ बहुत कमीयां है मुझ में अभी। या यूँ कह लो अभी एक शुरुवात हूँ। जिन्दा हूँ बदोलत जो जी रहे हैं मुझको। या यूँ कह लो आप सब की शुक्रगुज़ार हूँ। मुझ से जुड़ जाने का शुक्रिया । मेरा अस्त्तित्व बनाने का शुक्रिया। मेरे शब्दों को सरहाने का शुक्रिया। मुझ में खुद को पाने का शुक्रिया। आप से ही जुडी है डोर जीवन की। या यूँ कह लो आपका ही किस्सा हूँ।। मैं शब्दों में जिंदगी एक किताब हूँ  या यूँ कह लो जीवंत एक ख्वाब हूँ।।     2...  ना कोई मंजिल, ना अपना कोई ठिकाना आजकल, हमने सीख लिया है यूँ ही दिन बिताना आजकल ये सोचने की बीमारी न जाने कब इतनी बढ़ गयी, सब कुछ लगता है लिखने का बहाना आजकल जीया है अब तक हर एक पल ख्वाइश से, शुरू किया है मन को बेड़ियाँ पहनाना आ...

हमारे संस्कार

   समय बदल गया, परिस्थितियाँ बदल गई, हम बदल गए, पीढ़ियाँ बदल गईं, पर नहीं बदले तो हमारे संस्कार। हज़ारों साल पहले बने हमारे संस्कारों के पालना की रीत की सुई वहीं अटकी हुई है। कुछ साल पहले तक जो संतान कहे जाते थे वो आज माता-पिता बन गए। जब वे संतान थे तब उन्हें उनके माता-पिता उन्हें संस्कारों की पालना करने की कहा करते थे परंतु क्या उनके माता-पिता ने कभी उन संस्कारों की पालना की थी ? जो अब अपने बच्चों से पालना की अपेक्षा कर रहे हैं। ये एक शृंखला है जो ऊपर से चली आ रही है | कहते हैं संस्कार जीवन को अनुशासित करते हैं | माता-पिता का आदर करना हमारे संस्कारों में से एक संस्कार है। भगवान राम इसी आदर करने के संस्कार के कारण बिना आगा-पीछा सोचे अपने पिता के आदेश पर वनवास चले गए थे। संतान ने तो संस्कार की पालना कर ली परंतु माता-पिता में से पिता ने ऐसा क्यों किया सब जानते हैं। उस ग़लती पर परदा डालने के लिए श्राप की थ्योरी लागू कर दी गई। श्राप की थ्योरी से उस समय के लोग शायद संतुष्ट गए होंगे परन्तु आज अगर कोई व्यक्ति ग़लती करता है त...