संदेश

फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लता मंगेशकर

लता जी का जाना, किसी सरस्वती के साकार से निराकार हो जाने जैसा अनुभव है। बहुत लम्बी तपस्या के बाद वरदान देने को प्रकट हुई किसी देवी के अंतर्धान हो जाने पर तपस्वी को जो अनुभूति होती होगी, ठीक उसी अनुभूति से आज भारत का एक-एक बाशिंदा गुज़र रहा है।  भारतभूमि के सहस्रों पुण्य फलित हुए तब जाकर तिरानबे वर्ष पहले देवी ने इस धरा पर जन्म लिया और भारतीय संगीत उस देवी के सुरम्य वरदानों से निखर उठा। अलाप, मुरकी और गायन की ऐसी-ऐसी हरक़तें संगीत के आंगन में किलोल करने लगीं कि कान से लेकर मन तक निहाल हो गया। 'मेरी आवाज़ ही पहचान है' गाते हुए जब उन्होंने 'आवाज़' शब्द गाया तो ऐसा लगा जैसे उनके कण्ठ में विद्यमान माँ वाणी लास्य कर उठीं। 'नैनों में बदरा छाए' गीत ने जब उनके कण्ठ का तीर्थ किया तो ऐसा लगा जैसे धैर्य के उत्तुंग शिखर से मिलन कि प्यास का झरना फूट पड़ा हो। 'लग जा गले' के शब्दों को जब उस स्वर का संसर्ग मिला तो ऐसा लगा मानो दुर्भाग्य के द्वार पर खड़े सौभाग ने वक़्त के उस लम्हे को अपने बाहुपाश में समेट लिया हो। और 'ऐ मेरे वतन के लोगो' को जब लता जी ने अपनी आवाज़ दी तो ऐ...