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फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महत्वपूर्ण पाठ

एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वेआज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमेंटेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ...उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...आवाज आई ...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये ,फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहाअब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..सर ने टेबल के नीचे सेचाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थितथोडी सी जगह में सोख ली गई ...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर...

तिन बाते....

√. तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बिमारी, कर्जा और शत्रु। →→→←←←←→→→← •√. तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र और हुनर। →→→←←←←→→→← •√. तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई और दोस्त। →→→←←←←→→→← •√. तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु। →→→←←←←→→→← •√. तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़। →→→←←←←→→→← •√. तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता। •√. तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु। →→→←←←←→→→← •√. तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ। →→→←←←←→→→← •√. तीन चीज़ें हमेश...

बेटी.......

एक आदमी के 3 बेटे और 1 बेटी थी और विदेश में रहते थे -एक बार उनकी माँ बहुत सिरियस बीमार हो गयी , उनके पिता जी अपने पहले बेटे को फ़ोन किया - बेटा तुम्हारी माँ बहुत बीमार है जल्दी से आ आओ,बेटा बोला पापा मै 3 साल की ट्रेनिंग पर हूँ , कृप्याआप उन दोनो भाइयो को फ़ोन करके बुला लो , फिर पिता ने अपने दुसरे बेटे को फ़ोन किया तो वो बोला मेरी पत्नी Pregnent है मै नहीं आसकता , आप उन दोनों भाइयों को फोन कर के बुला लो ,फिर बाप ने तीसरे बेटे को फ़ोन किया तो वो बोला मेरे तो INDIA आने के सिर्फ 3 महीने बाकीहैं ,फिर ही आ पाउँगा कृप्या आप उन दोनो भाइयों को फोन कर लो ,बाप रो पड़ाजिस मां बाप ने बैंक से लोन लेकर उन्हे विदेश भेजा आज वो ही इंकार कर रहे हैंवे इतने Busy हैं कि मां तक को देखने नहीं आ सकते वो खुद को संभाल नहीं सकाउसने फिर अपनी बेटी को फोन किया और मां के बारे में बताया बेटी रो पड़ी कहा पापा आप संभालिये अपने आप को मां को मैं और मेरा पति अभी पहली flight से वहां पहुंच रहे हैं आप टेंशन न लें,पिता - अरे बेटा पर तेरे पति का Business का क्या होगा ???बेटी - क्या पापा इस वक्त भी आप ऐसी बात कर रहे हो मां से ...

आखिर जीता आम आदमी

मित्रों,दिल्ली ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेध के घोड़े को रोक लिया है। जीत जीत होती है और हार हार। फिर हार जब इतनी करारी हो तो सवाल उठना और भी लाजिमी हो जाता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं सच कहूंगा मगर फिर भी हार जाऊंगा, वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा? लेकिन ऐसा हो चुका है और भारत की राजधानी दिल्ली में हो चुका है। कभी 15वीं-16वीं शताब्दी में कबीर को भी जमाने से यही शिकायत थी कि साधो,देख ये जग बौराना। साँच कहूँ तो मारन धावे, झूठौ जग पतियाना, साधो,देख लो जग बौराना।। मित्रों,वजह चाहे जो भी हो हार तो हार होती है। मुझे लगता है दिल्ली में भाजपा अतिआत्मविश्वास की बीमारी से ग्रस्त हो गई थी। भाजपा जनता से कट गई थी। लोक और तंत्र के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई थी। भाजपा का प्रचार ऊपर से नीचे की ओर चल रहा था वहीं आप पार्टी का प्रचार सीधे नीचे से चल रहा था। उनके कार्यकर्ता लगातार लोगों से डोर-टू-डोर संपर्क कर रहे थे जो कि भाजपा नहीं कर रही थी। फिर भाजपा ने चुनावों में काफी देर भी कर दी। मेरे हिसाब से दिल्ली में चुनाव लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद करवा लेना चाहिए था। च...

दिल्ली की हकीकत

कहते है दिल्ली में सांप की आंख सा आकर्षण है। जो आता है बस इसी का होकर रह जाता है। लेकिन इस होकर रह जाने में सर्पदंश का भय साये की तरह चलता रहता है। वैसे एक करोड़ तेईस लाख वोटरों वाली दिल्ली का सच उसका अपना रंग है क्योंकि दिल्ली में एक तरफ मेहनतकश की आजीविका का सवाल है तो दूसरी तरफ सार्वजनिक स्वास्थ्य का, एक तरफ इज्जतदार जिन्दगी का सवाल है तो दूसरी तरफ किसी भी तरह अंधेरे से पहले घर सुरक्षित पहुंचे का। एक तरफ गंदगी में समाया शहर तो दूसरी तरफ चकाचौंध में खोया शहर। एक तरफ लूटियन्स की दिल्ली तो दूसरी तरफ झुग्गी को पक्के मकान में बदलने भर का सियासी सपना। यह कल्पना के परे है कि देश की राजधानी दिल्ली में हर दिन एक नयी शुरुआत डर से शुरु होती है। दिल्ली वाला रात में बैठ कर यकीन से नहीं कह सकता कि अगली सुबह उसके दप्तर जाने का रास्ता होगा कौन सा। कहां से सब्जी मिलेगी या कहां से डीटीसी बस मिलेगी। किस रफ्तार से अपने मुकाम पर पहुंचेगा। पानी आयेगा या नही। बिजली मिलेगी या नहीं। उसे कुछ भी पक्का पता नहीं होता। प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक। पटाखों से परहेज। यमुना की सफाई। 15 बरस पुराने वाहनों को टाटा-ब...