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शुभकामनाएं नरेंद्र मोदी जी…

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शुभकामनाएं नरेंद्र मोदी जी… प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का व्यक्तित्व मानो उदघोषित कर रहा है कि शून्य का विस्फ़ोट हूं..!! एक शानदार व्यक्तित्व जब भारत में सत्तानशीं होगा ही तो फ़िर यह तय है कि अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनको सोने न देंगीं. यानी कुल मिलाकर एक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले सबसे पीछे वाले को देखना और उसके बारे में कुछ कर देने के गुंताड़े में मशरूफ़ रहना … बेशक सबसे जोखिम भरा काम होगा. बहुतेरे तिलिस्म और ऎन्द्रजालिक परिस्थितियां निर्मित होंगी. जो सत्ता को अपने इशारों पर चलने के लिये बाध्य करेंगी. परंतु भाव से भरा व्यक्तित्व अप्रभावित रहेगा इन सबसे ऐसा मेरा मानना है. शपथ-ग्रहण समा...

वाह मोदी वाह

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लोकसभा-2014 के चुनाव परिणाम प्रत्याशित हैं, लेकिन भाजपा का देशभर में अनूठा एवं अद्भूत प्रदर्शन अप्रत्याशित रहा है। सर्वेक्षण अनुमानों में भी लगभग यह स्पष्ट हो गया था कि ‘इस बार मोदी सरकार’ ही बनने वाली है। लेकिन, अनुमानों से कहीं बढ़कर चौंका ने वाले परिणाम आयेंगे, यह शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। यह यकीन था कि कांग्रेस अपनी कुनीतियों और कुशासन के कारण सत्ता से बेदखल होगी। लेकिन, इतनी बुरी तरह से होगी, यह भी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। तीस साल बाद भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह अनूठा चुनाव आया है। इसका श्रेय स्पष्ट तौरपर नरेन्द्र मोदी के अद्भूत नेतृत्व, अथक मेहनत, कर्मठ व्यक्तित्व, अटूट संघर्ष, अडिग रणनीति, असीम ज़ज्बे और अनुपम जुनून को जाता है। यह परिणाम ऐतिहासिक प्रदर्शन ‘नमोः’ का चमत्कार है। यह ‘मोदी की लहर’ का प्रत्यक्ष प्रमाण है। अगर इसे भाजपा अथवा यूपीए की जीत की बजाय ‘मोदी की जीत’ करार दिया जाये तो कदापि गलत नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी पार्टियों के तीखे, अनैतिक, अमर्यादित एवं असभ्य जुबानी और बेबुनियादी आरोपों का डटकर सामना तो किया ही, साथ ही अपनी ...

विचार ही चरित्र निर्माण करते हैं

जो विचार देर तक मस्तिष्क में बना रहता है, वह अपना एक स्थायी स्थान बना लेता है। यही स्थायी विचार मनुष्य का संस्कार बन जाता है। संस्कारों का मानव- जीवन में बहुत महत्त्व है। सामान्य- विचार कार्यान्वित करने के लिये मनुष्य को स्वयं प्रयत्न करना पड़ता है, किन्तु संस्कार उसको यंत्रवत संचालित कर देता है। शरीर- यन्त्र जिसके द्वारा सारी क्रियाएँ सम्पादित होती हैं, सामान्य विचारों के अधीन नहीं होता। इसके विपरीत इस पर संस्कारों का पूर्ण आधिपत्य होता है। न चाहते हुए भी, शरीर- यंत्र संस्कारों की प्रेरणा से हठात् सक्रिय हो उठता है और तदनुसार आचरण प्रतिपादित करता है। मानव जीवन में संस्कारों का बहुत महत्त्व है। इन्हें यदि मानव- जीवन का अधिष्ठाता और आचरण का प्रेरक कह दिया जाय तब भी असंगत न होगा।      केवल विचार मात्र ही मानव चरित्र के प्रकाशक प्रतीत नहीं होते मनुष्य का चरित्र विचार और आचार दोनों से मिलकर बनता है। संसार में बहुत से ऐसे लोग पाए जा सकते हैं, जिनके विचार बड़े ही उदात्त, महान और आदर्शपूर्ण होते हैं, किन्तु उनकी क्रियाएँ उसके अनुरूप नहीं होती। विचार पवित्र हों ...